Hindi Poem of Sahir Ludhianvi “Farar“ , “फ़रार” Complete Poem for Class 9, Class 10 and Class 12

फ़रार

 Farar

अपने माज़ी के तसव्वुर से हिरासांहूँ मैं

अपने गुज़रे हुए ऐयाम से नफरत है मुझे

अपनी बेकार तमन्नाओं पे शर्मिंदा हूँ

अपनी बेसूद उम्मीदों पे नदामत है मुझे

मेरे माज़ी को अँधेरे में दबा रहने दो

मेरा माज़ी मेरी ज़िल्लत के सिवा कुछ भी नहीं

मेरी उम्मीदों का हासिल, मिरी काविश का सिला

एक बेनाम अज़ीयत के सिवा कुछ भी नहीं

कितनी बेकार उम्मीदों का सहारा लेकर

मैंने ऐवान सजाए थे किसी की खातिर

कितनी बेरब्त तमन्नाओं के मुबहम ख़ाके

अपने ख़्वाबों में बसाए थे किसी की ख़ातिर

मुझसे अब मेरी मोहब्बत के फ़साने न कहो

मुझको कहने दो कि मैंने उन्हें चाहा ही नहीं

और वो मस्त निगाहें जो मुझे भूल गईं

मैंने उन मस्त निगाहों को सराहा ही नहीं

मुझको कहने दो कि मैं आज भी जी सकता हूँ

इश्क़ नाकाम सही – ज़िन्दगी नाकाम नहीं

उन्हें अपनाने की ख्वाहिश, उन्हें पाने की तलब

शौक़े-बेकार सही, सअइ-ए-ग़म-अंजाम नहीं 

वही गेसू, वही नज़रें, वही आरिज़, वही जिस्म

मैं जो चाहूं तो मुझे और भी मिल सकते हैं

वो कंवल जिनको कभी उनके लिए खिलना था

उनकी नज़रों से बहुत दूर भी खिल सकते हैं

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