Hindi Poem of Sarveshwar Dayal Saxena “Suro ke sahare“ , “सुरों के सहारे” Complete Poem for Class 9, Class 10 and Class 12

सुरों के सहारे

 Suro ke sahare

दूर दूर तक

सोयी पड़ी थीं पहाड़ियाँ

अचानक टीले करवट बदलने लगे

जैसे नींद में उठ चलने लगे।

एक अदृश्य विराट हाथ बादलों-सा बढ़ा

पत्थरों को निचोड़ने लगा

निर्झर फूट पड़े

फिर घूम कर सबकुछ रेगिस्तान में बदल गया

शांत धरती से

अचानक आकाश चूमते

धूल भरे बवंडर उठे

फिर रंगीन किरणों में बदल

धरती पर बरस कर शांत हो गए।

तभी किसी

बांस के वन में आग लग गई

पीली लपटें उठने लगीं

फिर धीरे-धीरे हरी होकर

पत्तियों से लिपट गईं।

पूरा वन असंख्य बाँसुरियों में बज उठा

पत्तियाँ नाच-नाच कर

पेड़ों से अलग हो

हरे तोते बन उड़ गईं।

लेकिन भीतर कहीं बहुत गहरे

शाखों में फँसा

बेचैन छटपटाता रहा

एक बारहसिंहा

सारा जंगल काँपता हिलता रहा

लो वह मुक्त हो

चौकड़ी भरता

शून्य में विलीन हो गया

जो धमनियों से

अनंत तक फैला हुआ है।

 

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