Hindi Poem of Sarveshwar Dayal Saxena “Vivashta“ , “विवशता” Complete Poem for Class 9, Class 10 and Class 12

विवशता

 Vivashta

कितना चौड़ा पाट नदी का

कितनी भारी शाम

कितने खोये खोये से हम

कितना तट निष्काम

कितनी बहकी बहकी-सी

दूरागत वंशी टेर

कितनी टूटी-टूटी-सी

नभ पर विहंगो की फेर

कितनी सहमी सहमी-सी

क्षिति की सुरमई पिपासा

कितनी सिमटी सिमटी-सी

जल पर तट तरु अभिलाषा

कितनी चुप-चुप गई रोशनी

छिप-छिप आई रात

कितनी सिहर सिहर कर

अधरों से फूटी दो बात

चार नयन मुस्काये

खोये भीगे फिर पथराये

कितनी बड़ी विवशता

जीवन की कितनी कह पाए।

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