जनसंख्या वृद्धि
Jansankhya Vridhi ke
भारत और चीन जहां जनसंख्या वृध्दि से बुरी तरह प्रभावित हैं, वहीं रूस संतान प्राप्ति के लिए तरस रहा हैं। आज रूस की चाह है कि भारत उसकी जनसंख्या वृध्दि में मदद करे। पुरूष रूस की महिलाओं से शादी करें। संताने रूस को दें । उनकी घटती आवादी को थामें और आगे बढाए।
विश्वभर के देशों में रूसी महिलाओं की पहली पसंद भारत के पुरूष हैं। यह पसंद ऐसे ही नहीं बनी, इसके पीछे उनका पारिवारिक और सामाजिक परिवेश का अध्ययन है। सुसंस्कृत और मूल्यों पर आधारित परिवार और समाज को बनाने के लिए भारतीय स्त्री-पुरूष विश्वभर में आदर्श उदाहरण प्रस्तुत करते हैं। भारत के लोग अपनी संस्कृति और मूल्यों को बचाने के लिए बड़ा से बड़ा त्याग कर सकते हैं। इस सामाजिक अध्ययन ने रूसी समाज को प्रेरित किया है कि मानवीय मूल्यों के लिए भारतीय दुनिया में बेहतरीन हैं । यह भारतीयों के लिए फक्र की बात है । भारत का इतिहास दुनिया में सबसे पुराना है। पांच हजार साल तो लिखित प्रमाणों से भरा पड़ा है। जबकि उससे पूर्व का इतिहास श्रुति के आधार पर पीढियों दर पीढी आगे बढता रहा । इसलिए विकास की दृष्टि से भारत का इतिहास संपन्न है। सदियों पुरानी धरोहरें जगह-जगह मिल जाएंगी। यह सब हमारे विकसित होने के प्रमाण हैं। ज्ञान में भारत ने दुनिया को बहुत कुछ दिया। शून्य से लेकर ब्रह्माण्ड में हो रही उथल-पुथल की जानकारियों से विश्व को अवगत कराने में भारत का योगदान अद्वितीय है। हमारे पंचाग, हमारी जन्म की दशा और दिशा पर ग्रहों के पड़नेवाले प्रभावों का अध्ययन भी पूर्ण रूप से वैज्ञानिक आधार पर है। इसलिए कल्पनाओं को साकार करनेवालों में भारतीय अग्रणी रहे हैं। भले ही आज समाज में वर्णों से आई विकृति से भारतीय समाज की आलोचना लोग आसानी से कर लेते हैं। लेकिन यह समाज की स्थाई व्यवस्था नहीं रही होगी। विकृतियों ने उसे परंपरागत पीढियों में ढाला होगा। ब्राह्मण, राजपूत, वैश्य और शूद्र चार वर्ण किसी भी रूप से पीढियों को ढोने के लिए नहीं रहे होंगे। वह इसी से पता चल जाता है जब चाणक्य ने मौर्य वंश को राजगदद्ी तक पहुंचाया। चंद्रगुप्त किसी परंपरागत खानदान से राजा नहीं बना था, चाणक्य ने उसे एक साधारण परिवार से उठाया था। उसकी बुध्दि और विवेक ने उसको राजा के पद के योग्य बनाया। इससे यह भी पता चलता है कि हमारी लोकतंत्रात्मक परंपराओं की जड़ बहुत गहरी हैं। यह मात्र आजादी के बाद लोकतंत्रात्मक संविधान स्वीकृत करने का मसला नहीं है। इसके पीछे हमारे यहां पर्याप्त व्यावहारिक अध्ययन और विश्लेशण का आधार रहा है। आज समाज को विकृत करने में कुछ स्वार्थी तत्वों का हाथ है। काम के बंटवारे के आधार पर ही यह चार वर्ण, पद रहे होंगे। जैसे आज राजनीति करनेवाले प्रधानमंत्री की कुर्सी तक पंहुचने के लिए पारिवारिक परंपराओ को आधार बनाकर अपने लिए आधार तैयार करते हैं । और उस आधार पर अपने लिए लोकसभा हो या किसी अन्य चुनाव में उतरते हैं , उन्हे चुनाव में उतरने में आसानी हो जाती है। यदि एक अनजान किसी पुराने राजनीतिज्ञ के विरूध्द चुनाव में उतरता है तो उसकी पहचान आसानी से नहीं बनती , उसे हार का सामना करना पड़ सकता है। इसका मतलब यह नहीं है कि वह राजनीति के बारे में अनजान है।राजनीति उसे आती है। समाज के लिए वह कुछ कर सकता है, पर पीढियों का इतिहास उसके साथ नहीं रहता है। राजनीति में नये उतरे व्यक्ति को अपनी पहचान बनाने के लिए बहुत मेहनत करनी पड़ती है। आज यदि राजनीति में राहुल गांधी, सोनिया गांधी का नाम दिखता है, यह उनके व्यक्तिगत कारणों से नहीं है। उसके पीछे उनके पुरखों का छोड़ा हुआ इतिहास है। ठीक इसके विपरीत मायावती है। यह उसका व्यक्तिगत परिश्रम है। वर्षों की सामाजिक साधना ने उसे इस लायक बनाया कि वह एक लोकतंत्रात्मक समाज में अपना कद बना सकी। इस तरह का फर्क हर क्षेत्र में है। ऐसे ही पूर्व का ब्राह्मण बौध्दिक चातुर्य से संपन्न रहा होगा। लेकिन उसके पारिवारिक और सामाजिक क्रिया कलापों से बेटे ने भी वही हुनुर सीखा होगा और पुन: ब्राह्मण पद पर दूसरी पीढी बैठी होगी फिर यह क्रम निरंतर चलता रहा और वह ब्राह्मण वंशावली का हिस्सा बन गया। ऐसी ही स्थिति राजपूतों की रही । पूर्व में समाज को सुरक्षा देने के लिए राजपूत पद का सृजन हुआ होगा, फिर वह पद विकृत होकर राजपूतों की वंशावली में परिवर्तित हो गया। इसी प्रकार वैश्यों का वंशीकरण हुआ है। प्रारंभिक स्थिति में यह पद वैश्य पद के रूप में रहा होगा, लेकिन उस पद के अनुकूल अन्य समाज से सक्षम ब्यक्ति नहीं रहे होंगे, इसलिए वैश्य वर्ण का क्रम चल पड़ा। ऐसी स्थिति शूद्रों की रही होगी । शूद्र पद कोई स्थाई पीढिगत पद नहीं रहा होगा। पर पीढी दर पीढी उसी कार्य को करने से वह वंशानुगत हो गया। और इस प्रकार वर्ण व्यवस्था विकसित होती गई। यदि व्यक्ति अपना कार्य का रूप बदलता रहता तो यह एक दूसरे का गला काटनेवाली परिस्थितियां नहीं आतीं। खाइयां न बनती। आज भी पिता के व्यवसाय के आधार पर बेटे बेटियां अपना कारोबार चुन रहे हैं। उन्हें पिता का व्यवसाय चुनने में आसानी होती है क्योंकि कि वह उस परिवेश से पूरी तरह परिचित रहता है। फिल्म स्टार का बेटा फिल्म स्टार बनना, डाक्टर का बेटा डाक्टर, इंजीनियर का बेटा इंजीनियर बनने में आसानी महसूस करता है। परंपराएं लगातार चल रही हैं। रजनेता का बेटा राजनेता, ब्यूरोक्रेट का बेटा ब्यूरो क्रेट अक्सर बनते हैं। आज यदि पूरी वर्णव्यवस्था को मिटा भी दिया जाए फिर भी पिता द्वारा अपनाए गये व्यवसाय को संतानें चुनती हैं। इस तरह से इसे विकृति के रूप में देखा जा रहा है। आंदोलन खड़े किये जा रहे हैं। वर्ण व्यवस्था को तोड़ने के उपाय ढूंढे जा रहे हैं। पर यह तोड़ना क्या आसान होगा? इन प्रसंगो को उठाने के पीछे प्रयास यही है कि विशेष वर्ण और विशेष जाति के प्रति घृणा करना किसी भी तरह उचित नहीं है। वह उस जाति का दोष नहीं । परिस्थितियों ने ही उसे उस रास्ते पर चलने के लिए मजबूर किया है। इसलिए कीचड़ उछालकर उस वर्ण और समाज को गालियां देने का क्रम ठीक नहीं है। तथाकथित उच्च कुल उसे परिस्थितिवश ही मिला। इसमें उसका कोई दोष नहीं है। परिस्थितिवश ही वह उच्च कुल में होकर भीख मांग रहा है। दर-दर की ठोकरें खा रहा है। इसमें लाखों उदाहरण्ा हैं जो उच्च कुल में जन्म लेने के बाद भी समाज की निकृष्ट सीढी पर जीवन व्यतीत कर रहे हैं। हाल ही में मुगल बादशाहों के रिश्तेदार कबाड़ी का काम करते हुए मिले । इसी प्रकार टीपू सुल्तान के परिवारजनों के साथ हो रहा है। राजाओं की संताने दर-दर भीख मांगने को मोहताज हैं। ऐसा नहीं कि हर समय एक जैसा ही होता है।
हजारों वर्षों की परिपक्व भारतीय सभ्यता ने शिष्ठता के साथ समय की शिला पर कदम-कदम पर इतिहास बनाया है। इसी लिए भारत को विश्व का गुरु भी कहा जाता है। यह सब ऐसे कारण हैं जिनकी वजह से पृथ्वी पर कहीं भी निवास करनेवाले के लिए भारत प्रेरणा का श्रोत है। इसी लिए सबका अनुराग भारत के लिए है, विशेष कर रूसी आजकल भारत के दीवाने ज्यादा ही हो रखे हैं। वह अपने देश की घटती हुई जनसंख्या को बढाने में भारतीय पुरुषों के साथ रूसी स्त्रियों की शादी करवाकर अपना स्थाई परिवार बनाना चाहते हैं। रूसी अपने को भारत के करीब मानते हैं। भाषा की वजह से भी सामीप्य है। संस्कृत और रूसी शब्दों का मूल भी एक ही है। जैसे संस्कृत में दूब को तृण और रूसी में त्रवा कहते हैं। यानी सभ्यता का बहाव भारत से हुआ। इटली में कई स्थानों पर भारतीय सभ्यता के अंश अभी भी सुरक्षित हैं। इसलिए इसमें कोई संदेह नहीं, जिसमें रूस अपनी पारिवारिक वृध्दि के लिए भारत की मदद चाहता है। वहां प्रति वर्ष जनसंख्या सात लाख की दर से घट रही है। वर्तमान में रूस की जनसंख्या चौदह करोड़ के आस-पास है। विस्तृत भू भागवाले रूस की जनसंख्या उत्तर प्रदेश की जनसंख्या के बराबर है।
रूस की लेखिका मार्या अरबातोबा जो टी.वी. मार्डरेटर भी है, उसने पच्चीस वर्ष रूसी पतियों के साथ बिताने के बाद एक भारतीय व्यापारी से शादी की है, अब वह संतुष्ट और खुश है। उसने पक्की धारणा बना ली है कि सुखी दांपत्य जीवन के लिए भारतीय सर्वश्रेष्ठ हैं। और एक आदर्श पति होते हैं। उसने अपनी नई पुस्तक ‘टेस्टिंग इंडिया ‘ में लिखा है कि भारतीय अपने परिवार, बच्चों और समाज के लिए समर्पित होते हैं।
रूसियों को यह भी खतरा दिख रहा है कि यदि भारतीयों को शादी के लिए आमंत्रित नहीं किया जाएगा तो 2050 आते-आते रूस में चीन की आवादी साइबेरिया से यूराल पर्वत तक छा जाएगी।
जनसंख्या बढाने के लिए वहां तरह-तरह के प्रयोग चल रहे हैं। उलायनोवस्क के गवर्नर ने तो बारह सितम्बर को पूरे प्रदेश में छुट्टी की घेषणा इसलिए की कि इस दिन वे बच्चे पैदा करने का प्रयास करें। यदि इस दिन कोई स्त्री गर्भवती होती है तो आनेवाले बारह जून को रूस के राष्टीय दिवस पर जो युगल बच्चे पैदा करने में सफल हो जाते हैं, उन्हें राज्य की ओर से बहुत सारे इनाम दिये जाने की घोषणा की गई है। इतना ही नहीं , बारह सितंबर से पहले डाक्टरों की टीमें पूरे क्षेत्र में बच्चे पैदा करने की जागृति के लिए भेजे गये। इसका नाम ही ‘फेमिली कांटेक्ट दिवस’ रखा गया।