नाम पे मेरे हामी भर थी पर हामी से जल गए लोग
Naap pe mere hamai bhar thi par hami se jal gye log
नाम पे मेरे हामी भर थी पर हामी से जल गए लोग।
काश! कि मैं बदनाम न होता बदनामी से जल गए लोग।।
बज़्मे-जहाँ भी उस अत तौबा कोना-कोना छाने कौन।
मैं नाकाम थका बैठा था नाकामी से जल गए लोग।।
होती मुझमें ख़ूबी तो फिर ख़ूबी की मैं सोचता ख़ैर।
ख़ामी-ख़ामी भर हूँ पर ख़ामी से जल गए लोग।।
ख़ास-उल-ख़ास के चर्चे हर सू ख़ूब है यारो बज़्मे- आप।
ख़ासी ठंडी सीरत वाले इक आमी से जल गए लोग।।
कू-ए-बुताँ में ज़ेरे- अदालत सुबह ‘शलभ’ की पेशी थी।
मुंसिफ़ की क्या बात करो लो आसामी से जल गए लोग।।