अन्धेरे के बाहर एक निगाह
Andhere ke bahar ek nigah
अन्धेरे के बाहर एक निगाह है
देखती हुई अन्धेरे और एकान्त के सारे दृश्य
भावनाओं के खेल में पराजित एक स्त्री
एक पराजित पुरुष का वरण कर रही है वहाँ
वहाँ अतीत की कलंक-कथाओं को भूल कर
आश्रय दे रहा है एक मन दूसरे मन को
एक शरीर दूसरे शरीर के समीप पहुँच रहा है धीरे-धीरे
उभरता हुआ अन्धेरे के बाहर की उस निगाह में
एक नए दृश्य-बंध की ओर मुड़ रही है जो
जहाँ एक प्यारे और पुराने सम्बन्ध को
अलविदा कह रहा है कोई हमेशा-हमेशा के लिए