विजयकांत
Vijaykant
पहाड़ी झरने की तरह
चट्टानों से टकराते
पहले-पहल मिले थे विजयकांत
विजयकांत
नद की तरह बहे तब से अब तक
समुद्र होने की प्रक्रिया में
ज्वारग्रस्त होते
फिर-फिर मिले विजयकांत
मेरे रेखांकित पानी को अर्थ देते
अपनी पृथ्वी की सार्थकता को सींचते अनवरत
जीते वैसे ही क़रीब-क़रीब
जैसे मिले थे पहली बार
विजयकांत…