Hindi Poem of Bashir Badra “Dusro ko hamari sajaye na de”,”दूसरों को हमारी सज़ायें न दे” Complete Poem for Class 9, Class 10 and Class 12

 

दूसरों को हमारी सज़ायें न दे

 Dusro ko hamari sajaye na de

दूसरों को हमारी सज़ायें न दे

चांदनी रात को बद-दुआयें न दे

फूल से आशिक़ी का हुनर सीख ले

तितलियाँ ख़ुद रुकेंगी सदायें न दे

सब गुनाहों का इक़रार करने लगें

इस क़दर ख़ुबसूरत सज़ायें न दे

मोतियों को छुपा सीपियों की तरह

बेवफ़ाओं को अपनी वफ़ायें न दे

मैं बिखर जाऊँगा आँसूओं की तरह

इस क़दर प्यार से बद-दुआयें न दे

 

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