गुलों की तरह हम ने ज़िंदगी को इस कदर जाना
Gulo ki tarha hum ne zindagi ko is kadar jana
गुलों की तरह हम ने ज़िंदगी को इस कदर जाना
किसी कि ज़ुल्फ़ में इक रात सोना और बिखर जाना
अगर ऐसे गए तो ज़िंदगी पर हर्फ़ आयेगा
हवाओं से लिपटना तितलियों को चूम कर जाना
धुनक के रख दिया था बादलों को जिन परिंदों ने
उन्हें किसने सिखाया अपने साये से भी डर जाना
कहाँ तक ये दिया बीमार कमरे कि फ़िज़ां बदले
कभी तुम एक मुट्ठी धुप इन ताकों में भर जाना
इसी में आफिअत है घर में अपने चैन से बैठो
किसी कि स्मित जाना हो तो रस्ते में उतर जाना