याद एक गुनगुनाती हुई ख़ुशबू की
Yaad ek gungunati hui khushbu ki
रोज़ रात को तीन बजे
एक ट्रेन मेरे दिल पर से गुज़रती है
और एक शहर मेरे अन्दर जाग कर सो जाता है
कहीं दूर से एक आवाज़ आती है
एक चाँद छपाक से पानी में कूद कर अँधेरे में खो गया है
समुद्र का शोर
लहरें गिनने में असमर्थ हो गया है
दिन के टुकड़े और रात की धज्जियों को
गिनना असम्भव है मेरे लिए
सिर्फ एक ख़ुशबू गुनगुनाती फिर रही है अभी भी-
‘सरे राह चलते-चलते’
ख़ुशबू ठहर गई है
और एक सूरज और एक शहर की आँखों में
समुन्दर उतर आए हैं!
अब भी रोज़ रात को
एक ट्रेन मेरे दिल से गुजरती है
और एक कला की देवी अपनी कला को
अमृत पिला जाती है ठीक उसी समय!