Hindi Poem of Sumitranand Pant “Ghanta ”, “घंटा” Complete Poem for Class 10 and Class 12

घंटा -सुमित्रानंदन पंत

Ghanta – Sumitranand Pant

नभ की है उस नीली चुप्पी पर
घंटा है एक टंगा सुन्दर,
जो घड़ी घड़ी मन के भीतर
कुछ कहता रहता बज बज कर।
परियों के बच्चों से प्रियतर,
फैला कोमल ध्वनियों के पर
कानों के भीतर उतर उतर
घोंसला बनाते उसके स्वर।
भरते वे मन में मधुर रोर
“जागो रे जागो, काम चोर!
डूबे प्रकाश में दिशा छोर
अब हुआ भोर, अब हुआ भोर!”
“आई सोने की नई प्रात:
कुछ नया काम हो, नई बात,
तुम रहो स्वच्छ मन, स्वच्छ गात,
निद्रा छोडो, रे गई, रात!

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