Hindi Poem of Dinesh Singh “Dwand”,”द्वंद्व” Complete Poem for Class 9, Class 10 and Class 12

द्वंद्व

 Dwand

रहते हैं अपने घर में

उनके घर की कहते हैं

मन नद्दी-नालों में

कितने परनाले बहते हैं

कितना पानी हुआ इकट्ठा

बस्ती में आबादी में

बहकर आया ताल-पोखरे

होकर निर्जन वादी में

बाँह पसारे मिलती धारा

दो तट साधे रहते हैं

बरखा बूँदी के मौसम की

ढीली चालें बढ़ते पग

झोंके बहे खुली पछुआ के

नाव चले डगमग-डगमग

एक हाथ तट की माटी

दूजे से गठरी गहते हैं

पार उतर जाने का सुख

उस पार छूट जाने का गम

पीछे की वह राग-बाँसुरी

आगे लहराते परचम

इन दोनों के बीच अकेले

एक द्वंद्व में दहते हैं

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