Hindi Poem of Jagdish Gupt “  Saanjh 11”,”साँझ-11” Complete Poem for Class 9, Class 10 and Class 12

साँझ-11

 Saanjh 11

 

खिल उठा मुकुल-दल सुरिमत, 

छिव अखिल भुवन में छाई। 

साकार हो गई सहसा, 

जैसे तरू की तरूणाई।।१५१।। 

कामिनी-कुंज में खोई, 

रजनी की सारी माया।

तारक प्रसून वन बैठे,

दर्ुमदल में तिमर समाया।।१५२।। 

जितना वैभव जो चाहे, 

कामिनी-विटप से लेले। 

हीरक से सुमन सलोने, 

मरकत से दल अलबेले।।१५३।। 

जाने कितनी कोमल हैं, 

चू पड़ती तिनक छुये से।

हिम-धवल पाँच पंखुरियाँ,

शर पंच पंचशर के से।।१५४।। 

हो गये पार अन्तर के, 

मैं देख रहा भूला सा।

मेरी साँसो-साँसों में, 

कीमिनी-कुंज फूला सा।।१५५।। 

सुधियों में बेसुध होकर, 

मैंने सब सुधबुध खोई। 

जीवन की गीली गाथा, 

कामिनी-कुंज में सोई।।१५६।।

पीली पराग किणकाऐं, 

किंजल्क-जाल में उलझीं। 

इस उलझन के चिंतन से, 

चिंता की अलकें सुलझी।।१५७।। 

लिपटी जाती हैं तरू से, 

बल खा-खाकर बल्लरियाँ। 

रहती हैं पर फैलाये, 

ऊपर सौरभ की पिरयाँ।।१५८।। 

सौरभ की चलाचली में, 

यह मौन व्यथा भर लाये। 

किस तप्त श्वास को छूकर, 

कामिनी-कुसुम कुम्हलाये।।१५९।। 

सूना मन, सूना जीवन, 

सूने दिन, सूनी रातें।

सूनी-सूनी आँखोें में, 

छाई दुख की बरसातें।।१६०।।

धँुधले अतीत की स्मृति में,

खोया-खोया सा निश्चल। 

शिखरों पर टिककर जैसे, 

कुछ सोच रहा है बादल।।१६१।। 

कल्पने! वहां पर ले चल, 

स्वर जहां निखर जाता हो।

रिश्मयाँ नृत्य करती हो, 

तारक-समूह गाता हो।।१६२।। 

नीरव नीरद के पट पर, 

बँूदों के घँुघुरू छमके।

संगीत स्वप्न लखता हो, 

चंचल चपलाएं चमकें।।१६३।। 

रिमझिम-रिमझिम पावस का, 

कल जल-तरंग बजता हो। 

लय में लय हो जाने को, 

नव इन्दर्-धनुष सजता हो।।१६४।। 

पलकों के शिथिल क्षितिज पर, 

दिन-रात जलद छाते हैं। 

वरदान उमड़ आते हैं, 

अभिशाप बरस जाते हैं।।१६५।।

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