Hindi Poem of Jagdish Gupt “  Bathuye ki patti, munge jesi bal”,”बथुए की पत्ती, मूंगे जैसी बाल” Complete Poem for Class 9, Class 10 and Class 12

बथुए की पत्ती, मूंगे जैसी बाल

 Bathuye ki patti, munge jesi bal

 

पौधों में उभरा

सीताओं का रूप

पछुआ के झोंकों से

हिल उठती धूप

बैंगनी-सफ़ेद बूटियों की हिलकोर

पीले फूलों वाली छींट सराबोर

ओस से सनी

चिकनी मिट्टी की गंध

पाँवों की फिसलन

बन जाती निर्बन्ध

शब्द-भरी नन्हीं चिड़ियों की बौछार

लहराकर तिर जाती आँखों के पार

मेड़ के किनारे

पगडंडी के पास

अनचाहे उग आती

अजब-अजब घास

इक्का-दुक्का उस हरियाली के बीच

कुतरती गिलहरी, फिर-फिर दानें खींच

पकने में होड़ किए

गेहूँ की बाल

बथुए की पत्ती

मूंगे जैसी लाल ।

 

 

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