यादव जी !
Yadav ji
मोह तो त्यागना पड़ता है
पुरानी से पुरानी
पुस्तकों-पत्रिकाओं का भी
एक उम्र होने पर!
काश
पुस्तकें-पत्रिकाएँ भी
जायदाद हुई होतीं
हुई होतीं जेवरात ज़रूरी।
होतीं बैंक बैलेंस ही आकर्षक!
तो मशक्कत तो न करनी पड़ती इतनी
खोजने में इनके
उत्तराधिकारी
यादव जी!