Hindi Poem of Divik Ramesh “Hamara kabutar”,हमारा कबूतर” Complete Poem for Class 9, Class 10 and Class 12

हमारा कबूतर

 Hamara kabutar

रह तो बहुत दिनों से रहा है कबूतर

शॉफ़्ट के एक कोने में

हमारे घर की ।

और उसका परिवार भी

जब-तब फड़फड़ा लेता है पंख ।

और संगीत

कुछ देर थमा रह जाता है

गुसलख़ाने में

अटका

खिड़की के आस-पास ।

उस दिन बतिया रहा था कबूतर

घर के बाहर

पार के पेड़ पर

किसी कबूतर से ।

मैंने सुना

और ध्यान से सुना

कह रहा था चलते समय

‘आना कभी हमारे घर ।’

सुन कर मुझे अच्छा लगा था

और मान लीजिए चाहे बाक़ी सब गप्प

पर

पहली बार लगा था

कबूतर हमारा है

और घर कबूतर का भी ।

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