Hindi Poem of Pratibha Saksena “  Sone ka hiran”,” सोने का हिरन” Complete Poem for Class 9, Class 10 and Class 12

सोने का हिरन

 Sone ka hiran

 

काहे राम जी से माँग लिया सोने का हिरन,

सोनेवाली लंका में जा के रह ले सिया!

अनहोनी ना विचारी जो था आँखों का भरम,

छोड़ आया महलों को, काहे ललचा रे, मन!

कंद-मूल फल-फूल तुझे काहे न रुचे,

धन वैभव की चाह कहीं रखी थी छिपा,

सोने रत्नों की कौंध आँखें भर ले, सिया!

वनवास लिया तो भी तो उदासी ना भया,

कुछ माँगे बिना जीने का अभ्यासी ना हुआ!

मृगछाला सोने की तो मृगतृष्णा रही,

तू भी जान दुखी हरिनी के मन की विथा!

कहीं सोने की तू ही न बन जाये री सिया!

घर-द्वार का सपन काहे पाला मेरे मन!

जब लिखी थी कपाल में जनम की भटकन,

छोटे देवर को कठोर वचन बोले थे वहाँ,

अब लोगों में पराये दिन रात पहरा,

चुपचाप यहाँ सहेगी पछतायेगा हिया!

काहे राम जी से माँग लिया सोने का हिरन,

सोनेवाली लंका में जा के रह ले सिया!

 

 

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