मछुआरा
Machuara
मछुआरा फिर से जाल समेटेगा!
हो सावधान री, प्राणों की मछली ,
तू कितनी बार बची आई ,फिसली ,
हर बार नहीं बच पाता कोई भी ,
चुक जातीं सब भूलें पिछली-अगली!
बंसी में डोरी ,डोरी में काँटा ,
हर बार नया भर चारा , फेंकेगा!
मछुआरा फिर से जाल समेटेगा!
गहरा पानी ,हर जगह जाल फैले ,
क्या फँसी नहीं मछलियाँ कभी पहले?
इस बार अगर बच भी निकली तो क्या ,
कुछ पल तल -सतहों को अपना कह ले!
खेले बिन उसको चैन कहाँ आये
साँसों की डोरी झटक लपेटेगा!
फिर से मछुआरा जाल समेटेगा!