मॄत्युदण्ड की धमकी
Tenali Ram aur Mrithudand ki dhamki
थट्टाचारी कॄष्णदेव राय के दरबार में राजगुरु थे। वह तेनाली राम से बहुत ईर्ष्या करते थे। उन्हें जब भी मौका मिलता, तो वे तेनाली राम के विरुद्ध राजा के कान भरने से नहीं चूकते थे। एक बार क्रोध में आकर राजा ने तेनाली राम को मॄत्युदण्ड देने की घोषणा कर दी, परन्तु अपनी विलक्षण बुद्धि और हाजिर जवाबी से तेनाली राम ने जीवन की रक्षा की।
एक बार तेनाली राम ने राजा द्वारा दी जाने वाली मॄत्युदण्ड की धमकी को हमेशा के लिए समाप्त करने की योजना बनाई। वह थट्टाचारी के पास गए और बोले, “महाशय, एक सुन्दर नर्तकी शहर में आई है। वह आपके समान किसी महान व्यक्ति से मिलना चाहती है। उसने आपकी काफी प्रशंसा भी सुन रखी है। आपको आज की रात उसके घर जाकर, उससे अवश्य मिलना चाहिए, परन्तु आपकी बदनामी न हो, इसलिए उसने कहलवाया है कि आप उसके पास एक स्त्री के रुप में जाइएगा।”
थट्टाचारी तेनाली राम की बातों से सहमत ओ गए। इसके बाद तेनाली राम राजा के पास गए और वही सारी कहानी राजा को सुनाई। राजा की अनेक पत्नियॉ थीं तथा वह एक और नई पत्नी चाहते थे। अतः वे भी स्त्री के रुप में उस नर्तकी से मिलने के लिए तैयार हो गए।
शाम होते ही तेनाली राम ने उस भवन की सारी बत्तियॉ बुझा दीं, जहॉ उसने राजगुरु और राजा को बुलाया था। स्त्री वेश में थट्टाचारी पहले पहूँचे और अंधेरे कक्ष में जाकर बैठ गये। वहीं प्रतीक्षा करते हुए उन्हें पायल की झंकार सुनाई दी। उन्होंने देखा कि एक स्त्री ने कमरे में प्रवेश किया है, परन्तु अंधेरे के कारण वह उसका चेहरा ठीक से नहीं देख पाए। वास्तव में राजगुरु जिसे स्त्री समझ रहे थे वह स्त्री नहीं, बल्कि राजा ही थे और वार्तालाप शुरु होने की प्रतीक्षा कर रहे थे। थोडी देर पश्चात कमरे की खिडकी के पास खडे तेनाली राम को आवाज सुनाई डी।
“प्रिय, तुम मुझे अपना सुन्दर चेहरा क्यों नहीं दिखा रही हो?” थट्टाचारी मर्दाना आवाज में बोले ।
राजा ने राजगुरु की आवाज पहचान ली और बोले, “राजगुरु, आप यहॉ क्या कर रहे हैं
राजगुरु ने राजा की आवाज पहचान ली । शीघ्र ही वे दोनों समझ गए कि तेनाली राम ने उन्हें मूर्ख बनाया है। दोनों ने कक्ष से बाहर आने का प्रयास किया, परन्तु तेनाली राम ने द्वार बाहर से बन्द कर उस पर ताला लगा दिया था। वह खिडकी से चिल्लाया, “यदि आप दोनों यह वचन दें कि भविष्य में कभी मॄत्युदण्ड देने की धमकी नहीं देंगे, तो मैं दरवाजा खोल दूँगा।”
महाराज को तेनाली राम के इस दुस्साहस पर बहुत ही क्रोध आया, पर इस परिस्थिति में दोनों अंधकारमय कक्ष में असहाय थे और तेनाली राम की इस हरकत का उसे मजा भी नहीं चखा सकते थे। ऊपर से दोनों को बदनामी का डर अलग था और दोनों के पास अब कोई रास्ता भी नहीं बचा था, इसलिए दोनों ने ही तेनाली राम की बात मान ली।