ईसामसीह की दयालुता
Isahmasih ki Dayaluta
ईसामसीह के दिल में सबके लिए प्रेम था। वह किसी से भी घृणा नहीं करते थे। उनके जमाने में एक सम्प्रदाय था फरीसी। उस सम्प्रदाय के मानने वाले मूसा-संहिता की बहुत ही संकीर्ण व्याख्या करते थे और उस संहिता के छोटे-छोटे नियमों और परम्परागत रीती-रिवाजों का पालन करना अनिवार्य मानते थे। इस तरह उनका धर्म कर्मकांडी बन गया था। जो लोग उसके अनुसार नहीं चलते थे, उन्हें वे पापी समझते थे। अधिकांश पंडित लोग फरीसी थे। इससे समाज में उनकी बड़ी धाक थी। रोमियों के लिए चुंगी आदि करों की वसूली का काम नाकेदार किया करते थे। फरीसी उन्हें पापी मानते थे। वे यह भी मानते थे कि किसी गैर यहूदी के घर में पैर रखने से यहूदी अशुद्ध हो जाता है। एक दिन ईसा अपने शिष्यों के साथ मत्ती के घर भोजन करने गये। उनके साथ और भी बहुत से नाकेदार आकर भोजन करने बैठ गये। फरीसियों ने यह देखा तो ईसा के शिष्यों से कहा, तुम्हारे गुरु नाकेदारों और पापियों के साथ भोजन क्यों करते हैं? यह सुनकर ईसा ने उनसे कहा वैद्य की जरुरत नीरोग लोगों को नहीं होती, रोगियों को होती है। इसका मतलब समझो। मैं बलिदान नहीं, बल्कि दया चाहता हूं। मैं धार्मिक लोगों को नहीं, पापियों को बुलाने आया हूं। फरीसी और पंडित लोग पापियों के प्रति बड़ा ही कठोर व्यवहार करते थे। एक बार फरीसियों ने ईसा को गिरफ्तार करने के लिए प्यादों को भेजा। प्यादों ने लोटकर बताया “ वह आदमी जैसा बोलता है, वैसा कोई कभी नहीं बोला।” फरीसियों ने कहा, “क्या हमने या हमारे नेताओं में से किसी ने उसमें विश्वास किया है? भीड़ की बात दूसरी है। वह धर्म के नियमों की परवा नहीं करती और शापित है।” फरीसियों का यह कहना स्वाभाविक था, क्योंकि वे धर्म को भूल गये थे और कर्मकाण्ड से चिपक गये थे। ईसा ने बुराई को कभी अच्छा नहीं कहा लेकिन बुराई करनेवाले के प्रति सदा सहानुभूति रखी। इस संबंध में एक बड़ी ही मार्मिक घटना है।
एक दिन ईसा बड़े तड़के मंदिर आये। बहुत से लोग वहां इकट्ठे होकर बैठ गये और ईसा उन्हें शिक्षा देने लगे इतनरे में फरीसी और पंडित् लोग एक स्त्री को पकड़कर लाये और उसे भीड़ के बीच खड़ा करके कहा, “यह स्त्री व्यभिचार करते हुए पकड़ी गई है। संहिता में मूसा ने ऐसी स्त्रियों को पत्थरों से मार डालने का आदेश दिया है। आप इसके विषय में क्या कहते हैं?” ईसा सिर झुकाये उंगली से जमीन कुरेद रहे थे। जब उनसे उत्तर देने के लिए बहुत आग्रह किया गया तो ईसा ने सिर उठाया और कहा, “तुममें से जो निष्पाप हो, वही सबसे पहले इसे पत्थर मारे।” इतना कहकर फिर उन्होंने सिर झुका लिया और धरती को कुरेदने लगे। उनकी बात को सुनकर बड़ों से लेकर छोटों तक सब चले गये। अकेले ईसा और वह स्त्री रह गई। तब ईसा ने सिर उठाकर उस स्त्री से पूछा, “वे लोग कहां हैं? क्या एक ने भी तुम्हें दण्ड नहीं दिया?” स्त्री बोली, “नहीं, एक ने भी मुझे दण्ड नहीं दिया।” ईसा ने कहा, “मैं भी तुम्हें दण्ड नहीं दूंगा। जाओ, आगे फिर कभी पाप मत करना।” ऐसी घटनाओं का अंत नहीं है। एक बार किसी फरीसी ने ईसा को अपने घर भोजन पर बुलाया। ईसा उसके घर गये और भोजन करने बैठ गये। उस नगर की एक स्त्री को, जिसे सब पापिनी कहते थे, पता चला गया कि ईसा अमुक फरीसी के यहां भोजन कर रहे है। वह संगमरमर के पात्र में इत्र लेकर आई और ईसा के चरणों के पास रोती हुई खड़ी हो गई। उसके बगालों से उन्हें पोंछा और चरणों के पास रोती हुई खड़ी हो गई। उसके आंसू ईसा के चरण भिगोने लगे। स्त्री ने अपने बालों से उन्हें पोंछा , चरणों को चूम-चूमकर उन पर इत्र लगाया। जिस फरीसी ने उन्हें अपने घर बुलाया था, उसने यह देखा तो मन ही मन कहा, “यह आदमी अगर नबी होता तो जरुर जान जाता कि जो स्त्री उसे छू रही है, वह कौन है और कैसी है! वह तो पापिनी है।” ईसा उसके मन के भाव ताड़ गया। उन्होंने कहा, “सिफोन, मुझे तुमसे कुछ कहना है।” फरीसी बोला, “कहिये।”
ईसा ने कहा, “किसी महाजन के दो कर्जदार थे। एक पांच सौ दोनार का, दूसरा पचास का। उनके पास कर्ज चुकाने के लिए कुछ भी नहीं था। इसलिए महाजन ने दोनों को माफ कर दिया। उन दोनों में से महाजन को कौन अधिक प्यार करेगा?” सिमोन ने उत्तर दिया, “मेरी समझ में तो वह अधिक प्यार करेगा, जिसका ज्यादा कर्ज माफ हुआ।” ईसा बोले, “तुमने ठीक कहा।” फिर उन्होंने स्त्री की ओर मुड़कर कहा, “इस स्त्री को देखते हो? मैं तुम्हारे घर आया, पर तुमने तुझे पैर धोने के लिए पानी नहीं दिया। इसने अपने आंसुओं से मेरे पैर धोये और अपने बालों से पोंछा। तुमने मेरा चुम्बन नहीं किया, लेकिन यह जबसे अन्दर आई है, बराबर मेरे पैर चूम रही है। तुमने मेरे सिर में तेल नहीं लगाया, पर इसने मेरे पैरों पर इत्र लगाया है। इसलिए मैं तुमसे कहता हूं कि इसके बहुत से पाप माफ हो गये, क्योंकि इसने बहुत प्यार दिखाया है।” इसके बाद ईसा ने उस स्त्री से कहा, “तुम्हारे पाप माफ हो गये।” भोजन करानेवाले मन ही मन कहने लगे, “यह कौन है, जो पापों को भी माफ करता है?” पर ईसा ने उस स्त्री से कहा, “तुम्हारे विश्वास ने तुम्हारा उद्वार किया है। तुम शांन्ति प्राप्त् करो।जाओ।” एक बार ईसा येरिको में प्रवेश करके आगे जा रहे थे। जकेयुस नाम का एक प्रमुख और धनी नाकेदार यह देखना चाहता था कि ईसा कैसे है? लेकिन उसका कद बहुत छोटा था। वह भीड़ में उन्हें नहीं देख सका। तब वह आगे दौड़कर एक पेड़ पर चढ़ गया। ईसा उसी रास्ते से निकलने वाले थे। जब ईसा वहां आये तो उन्होंने निगाह उठाकर ऊपर देखा और उससे कहा, “जकेयुस, जल्दी नीचे आओ, क्योंकि आज मुझे तुम्हारे यहां ही ठहरना है।” जकेयुस की खुशी का ठिकाना न रहा। वह तत्काल पेड से उतरकर नीचे आया और उसने बड़े आनन्द से ईसा का स्वागत किया। और लोग बड़बड़ाते हुए कह रहे थे, “देखो तो, वह एक पापी के यहां ठहरने गये!”
समाप्त