Hindi Poem of Pratibha Saksena “ Janam”,”जन्म” Complete Poem for Class 9, Class 10 and Class 12

जन्म

 Janam

 

यवनिकाओं खिंचे रहस्यलोक में

ढल रहीं अजानी आकृति

की निरंतर उठा-पटक,

जीवन खींचता

विकसता अंकुर

कितनी भूमिकाओं का निर्वाह एक साथ

नए जन्म की पूर्व-पीठिका .

कितने विषम होते हैं

जन्म के क्षण

रक्त और स्वेद की कीच

दुसह वेदना,

धरती फोड़ बाहर आने को आकुल अंकुर

और फूटने की पीड़ा से व्याकुल धरती!

पीड़ा की नीली लहरें

झटके दे दे कर मरोड़ती,

तीक्ष्ण नखों से खरोंच डालती हैं तन

बार-बार प्राणों को खींचती -सी!

फूँकने में नए प्राण,

मृत्यु को भोगती

जननी की श्वासें श्लथ,

लथपथ .

देख कर आँचल का फूल

सारी पीड़ाएँ भूल

नेह-पगी अमिय-धार से सींचती,

सहज प्रसन्न .परिपूर्ण, आत्म-तुष्ट

जैसे कोई साखी या ऋचा

प्रकृति के छंद में जाग उठे!

 

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