दांडी मार्च
Dandi March
दांडी मार्च से अभिप्राय उस पैदल यात्रा से है, जो गाँधी जी और उनके स्वयं सेवकों द्वारा 12 मार्च, 1930 ई. को प्रारम्भ की गई थी। इसका मुख्य उद्देश्य था अंग्रेज़ों द्वारा बनाये गए ‘नमक क़ानून को तोड़ना’। गाँधी जी ने अपने 78 स्वयं सेवकों, जिनमें वेब मिलर भी एक था, के साथ साबरमती आश्रम से 358 कि.मी. दूर स्थित दांडी के लिए प्रस्थान किया। लगभग 24 दिन बाद 6 अप्रैल, 1930 ई. को दांडी पहुँचकर उन्होंने समुद्रतट पर नमक क़ानून को तोड़ा।
क़ानून तोड़ने का कारण
नमक क़ानून भारत के और भी कई भागों में तोड़ा गाया। सी. राजगोपालाचारी ने त्रिचनापल्ली से वेदारण्यम तक की यात्रा की। असम में लोगों ने सिलहट से नोआखली तक की यात्रा की। ‘वायकोम सत्याग्रह’ के नेताओं ने के. केलप्पन एवं टी.के. माधवन के साथ कालीकट से पयान्नूर तक की यात्रा की। इन सभी ने लोगों ने नमक क़ानून को तोड़ा। नमक क़ानून इसलिए तोड़ा जा रहा था, क्योंकि सरकार द्वारा नमक कर बढ़ा दिया गया था, जिससे रोजमर्रा की ज़रूरत के लिए नमक की क़ीमत बढ़ गई थी।
अब्दुल ग़फ़्फ़ार ख़ाँ का योगदान
उत्तर पश्चिम सीमा प्रांत में ख़ान अब्दुल ग़फ़्फ़ार ख़ान, जिन्हें ‘सीमांत गाँधी’ भी कहा जाता है, के नेतृत्व में ‘खुदाई खिदमतगार’ संगठन के सदस्यों ने सरकार का विरोध किया। उन्होंने पठानों की क्षेत्रीय राष्ट्रवादिता के लिए तथा उपविनेशवाद और हल्तशिल्प के कारीगरों को ग़रीब बनाने के विरुद्ध आवाज़ उठायी। ‘लाल कुर्ती दल’ के गफ़्फ़ार ख़ाँ को ‘फ़ख़्र-ए-अफ़ग़ान’ की उपाधि दी गयी। इन्होंने पश्तों भाषा में ‘पख़्तून’ नामक एक पत्रिका निकाली, जो बाद में ‘देशरोजा’ नाम से प्रकाशित हुई। गफ़्फ़ार ख़ाँ को ‘बादशाह ख़ाँ’ भी कहा जाता है। पेशावर में गढ़वाल राइफल के सैनिकों ने अपने साथी चंद्रसिंह गढ़वाली के अनुरोध पर सविनय अवज्ञा आन्दोलन कर रहे आन्दोलनकारियों की भीड़ पर गोली चलाने के आदेश का विरोध किया। नमक क़ानून भंग होने के साथ ही सारे भारत में सविनय अवज्ञा आन्दोलन ने ज़ोर पकड़ा।
आन्दोलन की व्यापकता
1930 ई. के ‘सविनय अवज्ञा आन्दोलन’ के समय ही उत्तर पश्चिम सीमा प्रान्त के कबायली लोगों ने गाँधी जी को ‘मलंग बाबा’ कहा। आन्दोलन क्रमशः व्यापक रूप से पूरे भारत में फैल गया। महिलाओं ने पर्दे से बाहर आकर सत्याग्रह में सक्रिय रूप से हिस्सा लिया। विदेशी कपड़ों की अनेक स्थानों पर होलियाँ जलाई गयीं। महिला वर्ग ने शराब की दुकानों पर धरना दिया तथा कृषकों ने कर अदायगी से इंकार कर दिया। ‘सविनय अवज्ञा आन्दोलन’ की मुख्य विशेषता थी- बड़े पैमाने पर पहली बार किसी आन्दोलन में महिलाओं की मुख्य सहभागिता। इसके पूर्व बहुत कम औरतों ने सार्वजनिक किस्म के राजनीतिक प्रदर्शनों में हिस्सा लिया था। उनमें से भी अधिकतक या तो चितरंजन दास या मोतीलाल नेहरू जैसे राष्ट्रीय नेताओं के परिवारों से संबंद्ध थीं या कॉलेज की छात्रायें थीं।
सरकार की झल्लाहट
चारों तरफ़ फैली इस असहयोग की नीति से अंग्रेज़ ब्रिटिश हुकूमत बुरी तरह से झल्ला गयी। 5 मई, 1930 ई. को गाँधी जी को गिरफ्तार कर लिया गया। आन्दोलन की प्रचण्डता का अहसास कर तत्कालीन वायसराय लॉर्ड इरविन ने गाँधी जी से समझौता करना चाहा।