मच्छीवारा और सरहिन्द का युद्ध
War of Machhiwara and Sirhind
मच्छीवारा का युद्ध :- हुमायूँ लगभग 14 वर्ष तक क़ाबुल में रहा। हुमायूँ ने पुनः 1545 ई. में कंधार एवं काबुल पर अधिकार कर लिया। शेरशाह के पुत्र इस्लामशाह की मुत्यु के बाद हुमायूँ को हिन्दुस्तान पर अधिकार का पुनः अवसर मिला। 5 सितम्बर, 1554 ई. में हुमायूँ अपनी सेना के साथ पेशावर पहुँचा। फ़रवरी, 1555 ई. को उसने लाहौर पर क़ब्ज़ा कर लिया। फिर उसने आगे बाधा कर पंजाब में अधिकार के लिए अफगानों से युद्ध किया, यह युद्ध लुधियाना से लगभग 19 मील पूर्व में सतलुज नदी के किनारे स्थित ‘मच्छीवारा’ स्थान पर 15 मई, 1555 ई. को हुमायूँ एवं अफ़ग़ान सरदार नसीब ख़ाँ एवं तातार ख़ाँ के बीच हुआ। संघर्ष का परिणाम हुमायूँ के पक्ष में रहा। सम्पूर्ण पंजाब मुग़लों के अधिकार में आ गया।
सरहिन्द का युद्ध :- – यह संघर्ष में अफगान सेवा और मुग़ल सेना के भीच लगी गयी, अफ़ग़ान सेना का नेतृत्व सुल्तान सिकन्दर सूर एवं मुग़ल सेना का नेतृत्व बैरम ख़ाँ ने किया। इस संघर्ष में अफ़ग़ानों की पराजय हुई। 23 जुलाई, 1555 ई. के शुभ क्षणों में एक बार पुनः दिल्ली के तख्त पर हुमायूँ को बैठने का सौभाग्य प्राप्त हुआ।