उत्तर का पर्वतीय एवं पहाड़ी प्रदेश
Mountainous and mountainous regions of the north India
इस प्रदेश का हिमालय पर्वतीय प्रदेश के रूप में भी जाना जाता है, जो देश की उत्तर सीमा पर एक चाप के आकार में 2400 किमी. की लम्बाई में फैला है। इसका क्षेत्रफल लगभग 5 लाख वर्ग किमी है। इसका उद्गम पामीर की गाँठ से हुआ है। इसकी उत्पत्ति वस्तुतः एक भू-द्रोणी, जिसे टेथिस सागर कहते हैं, से हुई है। हिमालय पर्वत श्रेणी की कुल लम्बाई मकरान तट पर स्थित ग्वाडर से लेकर पूर्व में मिजों पहाड़ियों तक 2,400 किमी. है, जबकि इसकी चौड़ाई पश्चिम में 400 किमी और पूरब में 160 किमी. तक है। हिमालय की स्थलाकृतियों में मुख्यतः तीन लंबी और घुमावदार श्रेणियां हैं, जिनकी ऊंचाई दक्षिण से उत्तर की ओर क्रमशः बढ़ती जाती है। मंद गति के कारण इन्हें वर्तमान ऊंचाई को प्राप्त करने में 70 लाख वर्ष लगे हैं। भौतिक दृष्टि से हिमालय मे चार समान्तर श्रेणियां मिलती हैं जिनमें, सबसे उत्तर में ट्रांस अथवा तिब्बत हिमालय, उसके दक्षिण में क्रमशः महान अथवा आन्तरिक हिमालय, लघु अथवा मध्य हिमालय तथा उप अथवा शिवालिक श्रेणी स्थित हैं।
ट्रान्स अथवा तिब्बत हिमालय श्रेणी सबसे उत्तर में स्थित हैं। इसकी खोज सन् 1906 स्वैन महोदय ने की थी। इसकी लम्बाई 100 किमी. तथा चौड़ाई पूर्वी तथा पश्चिमी किनारों पर 40 किमी एवं बीच में 225 किमी तक पायी जाती है। इस श्रेणी की औसत ऊंचाई 3,100 से 3,700 मी तक पायी जाती है। इस श्रेणी की औसत ऊंचाई 3,100 से 3,700 मीं तक है एवं शीत कटिबन्धीय जलवायु के कारण इस पर वनस्पतियों का पूर्ण अभाव पाया जाता है। यह श्रेणी बंगाल की खाड़ी में गिरने वाली नदियों तथा उत्तर दिशा में भू-आवेष्ठित झीलों से निकलने वाली नदियों के बीच जल विभाजक की भूमिका निभाती है।
हिमालय तीन समानांतर पर्वत श्रंखलाओं में अवस्थित है जो पश्चिम में सिंधु गार्ज से पूर्व में ब्रह्मपुत्र गार्ज तक विस्तृत है। कश्मीर से अरुणाचल प्रदेश तक हिमालय पर्वत श्रंखला का विस्तार 2500 किमी. है। इस पर्वत शृंखला की पूर्व में चौड़ाई 150 किमी. तथा पश्चिम में 500 किमी तक है। अध्ययन की सुविधा की दृष्टि से हिमालय पर्वत श्रेणी को तीन वृहत् भागों में वर्गीकृत किया जा सकता है।
महान अथवा आंतरिक हिमालय
महान अथवा आन्तरिक हिमालय ही हिमालय पर्वतमाला की सबसे प्रमुख तथा सवोच्च तथा सर्वोच्च श्रेणी है, जिसकी लम्बाई उत्तर में सिंधु नदी के मोड़ से पूर्व में ब्रह्मपुत्र नदी के मोड़ तक 2,500 किमी. है। इसकी चौड़ाई 120 से 190 किमी. तक तथा औसत ऊंचाई 6,100 मीं. है। अत्यधिक ऊंचाई के कारण हिमालय साला भर बर्फ़ से ढंका रहता हैं, अतः इसे हिमाद्रि भी कहते हैं। इस श्रेणी में विश्व की सर्वोच्च पर्वत चोटियाँ पाई जाती हैं, जिनमें प्रमुख हैं – माउण्ट एवरेस्ट (8,848 मी.), कंचनजंगा (8,598 मीं.), मकालू (8,481 मीं.), धौलागिरी (8,172 मी.), मनसालू (8156 मी.), नंगा पर्वत (8,126 मीं.), अन्नापूर्णा (8,078 मी.), गोवाई थान (8,013 मी.), नन्दा देवी (7,817 मी.), नामचाबरवा (7,756 मी.), हरामोश (7,397 मी.), आदि। इस श्रेणी में उत्तर पश्चिम की ओर जास्कर श्रेणी के उत्तर-दक्षिण में देवसाई तथा रूपशू के ऊंचे मैदान मिलते हैं। सिन्धु, सतलुज, दिहांग, गंगा, यमुना तथा इनकी सहायक नदियों की घाटियाँ इसी श्रेणी में स्थित है।
लघु अथवा मध्य हिमालय श्रेणी
यह महान हिमालय के दक्षिण के उसके समानान्तर विस्तृत है। इसकी चौड़ाई 80 से 100 किमी. तक औसत ऊंचाई 1,828 से 3,000 के बीच पायी जाती है। इस श्रेणी में नदियों द्वारा 1,000 मीं. से भी अधिक गहरे खड्डों अथवा गार्जों का निर्माण किया गया है। यह श्रेणी मुख्यतः छोटी-छोटी पर्वत श्रेणियों जैसे – धौलाधार, नागटीवा, पीरपंजाल, महाभारत तथा मसूरी कासम्मिलित रूप है। इस श्रेणी के निचले भाग में देश के प्रसिद्ध पर्वतीय स्वास्थ्यवर्द्धक स्थान – शिमला, मसूरी, नैनीताल, चकराता, रानीखेत, दार्जिलिंग आदि स्थित है। वृहत तथा लघु हिमालय के बीच विस्तृत घाटियां हैं जिनमें कश्मीर घाटी तथा नेपाल में काठमांडू घाटी प्रसिद्ध है। इस श्रेणी के ढालों पर मिलने वाले छोटे-छोटे घास के मैदानों को जम्मू-कश्मीर में मर्ग (जैसे-सोनमर्ग, गुलमर्ग आदि) तथा उत्तराखण्ड में बुग्याल एवं पयार कहा जाता हे।
उप हिमालय या शिवालिक श्रेणी
यह हिमालय की सबसे दक्षिणी श्रेणी है एवं इसको ‘वाह्म हिमालय’ के नाम से भी जाना जाता है। यह हिमालय पर्वत की दक्षिणतम श्रेणी है जो लघु हिमालय के दक्षिण में इसके समानांतर पूर्व-पश्चिम दिशा में फैली हुई है। इसकी औसत ऊंचाई 900 से 12,00 मीटर तक औसत चौड़ाई 10 से 50 किमी है। इसका विस्तार पाकिस्तान के पोटवार पठार से पूर्व में कोसी नदी तक है। गोरखपुर के समीप इसे डूंडवा श्रेणी तथा पूर्व की ओर चूरियामूरिया श्रेणी के स्थानीय नाम से भी पुकारा जाता है। यह हिमालय पर्वत का सबसे नवीन भाग है। लघु तथा वाह्म हिमालय के बीच पायी जाने वाली विस्तृत घाटियों को पश्चिम में ‘दून’ तथा पूर्व में ‘द्वार’ कहा जाता है। देहरादून, केथरीदून तथा पाटलीदून और हरिद्वार इसके प्रमुख उदाहरण है।
हिमालय पर्वत श्रेणियों की दिशा में असम से पूर्व से उत्तर पूर्व हो जाती है। नामचाबरचा के आगे यह श्रेणियाँ दक्षिणी दिशा में मुड़कर पटकोई, नागा, मणिपुर, लुशाई, अराकानयोमा, आदि श्रेणियों के रूप में स्थित हैं जो भारत एवं म्यान्मार के मध्य सीमा बनाती है।
शिवालिक को जम्मू में जम्मू पहाड़ियाँ तथा अरुणाचल प्रदेश में डफला, गिरी, अवोर और मिशमी पहाड़ियों के नाम से भी जाना जाता है। अक्साईचीन, देवसाई, दिषसंग तथा लिंगजीतांग के उच्च तरंगित मैदान इन पर्वतों के निर्माण से पहले ही क्रिटेशश काल में बन चुके थे जो अपरदन धरातल के प्रमाण हैं।