Hindi Poem of Subhadra Kumari Chauhan “Pratiksha”, “प्रतीक्षा” Complete Poem for Class 10 and Class 12

प्रतीक्षा -सुभद्रा कुमारी चौहान

Pratiksha – Subhadra Kumari Chauhan

 

बिछा प्रतीक्षा-पथ पर चिंतित
नयनों के मदु मुक्ता-जाल।
उनमें जाने कितनी ही
अभिलाषाओं के पल्लव पाल॥

बिता दिए मैंने कितने ही
व्याकुल दिन, अकुलाई रात।
नीरस नैन हुए कब करके
उमड़े आँसू की बरसात॥

मैं सुदूर पथ के कलरव में,
सुन लेने को प्रिय की बात।
फिरती विकल बावली-सी
सहती अपवादों के आघात॥

किंतु न देखा उन्हें अभी तक
इन ललचाई आँखों ने।
संकोचों में लुटा दिया
सब कुछ, सकुचाई आँखों ने॥

अब मोती के जाल बिछाकर,
गिनतीं हैं नभ के तारे।
इनकी प्यास बुझाने को सखि!
आएंगे क्या फिर प्यारे?

Leave a Reply

This site uses Akismet to reduce spam. Learn how your comment data is processed.