Hindi Poem of Makhan Lal Chaturvedi “Gali me garima ghol-ghol, “गाली में गरिमा घोल-घोल ” Complete Poem for Class 10 and Class 12

गाली में गरिमा घोल-घोल -माखन लाल चतुर्वेदी

Gali me garima ghol-ghol – Makhan Lal Chaturvedi

 

गाली में गरिमा घोल-घोल,
क्यों बढ़ा लिया यह नेह-तोल।

कितने मीठे, कितने प्यारे,
अर्पण के अनजाने विरोध,
कैसे नारद के भक्ति-सूत्र,
आ गये कुंज-वन शोध-शोध!

हिल उठे झूलने भरे झोल,
गाली में गरिमा घोल-घोल।

जब बेढंगे हो उठे द्वार,
जब बेकाबू हो उठा ज्वार,
इसने जिस दिन घनश्याम कहा,
वह बोल उठा परवर-दिगार।

मणियों का भी क्या बने मोल।
गाली में गरिमा घोल-घोल।

ये बोले इनका मृदुल हास्य,
वे कहें कि उनके मृदुल बोल,
भूगोल चुटकियाँ देता है,
वह नाच-नाच उट्टा खगोल।

कुछ तो अपने फरफन्द खोल,
गाली में गरिमा घोल-घोल॥

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