Hindi Poem of Bihari Lal Chaube “Jake liye ghar aai ghighaya, “जाके लिए घर आई घिघाय ” Complete Poem for Class 10 and Class 12

जाके लिए घर आई घिघाय -बिहारी लाल

Jake liye ghar aai ghighaya – Bihari Lal Chaube

 

जाके लिए घर आई घिघाय, करी मनुहारि उती तुम गाढ़ी।
आजु लखैं उहिं जात उतै, न रही सुरत्यौ उर यौं रति बाढ़ी॥
ता छिन तैं तिहिं भाँति अजौं, न हलै न चलै बिधि की लसी काढ़ी।
वाहि गँवा छिनु वाही गली तिनु, वैसैहीं चाह (बै) वैसेही ठाढ़ी॥

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