Hindi Poem of Kabir “Karam gati tare nahin tari, “करम गति टारै नाहिं टरी ” Complete Poem for Class 10 and Class 12

करम गति टारै नाहिं टरी -कबीर

Karam gati tare nahin tari -Kabir

 

करम गति टारै नाहिं टरी॥

मुनि वसिस्थ से पण्डित ज्ञानी, सिधि के लगन धरि।
सीता हरन मरन दसरथ को, बन में बिपति परी॥1॥

कहँ वह फन्द कहाँ वह पारधि, कहँ वह मिरग चरी।
कोटि गाय नित पुन्य करत नृग, गिरगिट-जोन परि॥2॥

पाण्डव जिनके आप सारथी, तिन पर बिपति परी।
कहत कबीर सुनो भै साधो, होने होके रही॥3॥

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