Hindi Poem of Majruh Sultanpuri “Jla ke mashal-e-jaan hum junu sifat chale , “जला के मशाल-ए-जान हम जुनूं सिफात चले ” Complete Poem for Class 10 and Class 12

जला के मशाल-ए-जान हम जुनूं सिफात चले – मजरूह सुल्तानपुरी

Jla ke mashal-e-jaan hum junu sifat chale – Majruh Sultanpuri

 

जला के मशाल-ए-जान हम जुनूं सिफात चले
जो घर को आग लगाए हमारे साथ चले

दयार-ए-शाम नहीं, मंजिल-ए-सहर भी नहीं
अजब नगर है यहाँ दिन चले न रात चले

हुआ असीर कोई हम-नवा तो दूर तलक
ब-पास-ए-तर्ज़-ए-नवा हम भी साथ साथ चले

सुतून-ए-दार पे रखते चलो सरों के चिराग
जहाँ तलक ये सितम की सियाह रात चले

बचा के लाये हम ऐ यार फिर भी नकद-ए-वफ़ा
अगरचे लुटते हुए रहज़नों के हाथ चले

फिर आई फसल की मानिंद बर्ग-ऐ-आवारा
हमारे नाम गुलों के मुरासिलात चले

बुला ही बैठे जब अहल-ए-हरम तो ऐ मजरूह
बगल मैं हम भी लिए एक सनम का हाथ चले

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