Hindi Poem of Ramavtar Tyagi “Zindagi ek ras , “ज़िंदगी एक रस ” Complete Poem for Class 10 and Class 12

ज़िंदगी एक रस – रामावतार त्यागी

Zindagi ek ras -Ramavtar Tyagi

 

ज़िंदगी एक रस किस क़दर हो गई
एक बस्ती थी वो भी शहर हो गई

घर की दीवार पोती गई इस तरह
लोग समझें कि लो अब सहर हो गई

हाय इतने अभी बच गए आदमी
गिनते-गिनते जिन्हें दोपहर हो गई

कोई खुद्दार दीपक जले किसलिए
जब सियासत अंधेरों का घर हो गई

कल के आज के मुझ में यह फ़र्क है
जो नदी थी कभी वो लहर हो गई

एक ग़म था जो अब देवता बन गया
एक ख़ुशी है कि वह जानवर हो गई

जब मशालें लगातार बढ़ती गईं
रौशनी हारकर मुख्तसर हो गई.

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