Ancient India History Notes on “Bangal ka Vibhajan”, “बंगाल का विभाजन” History notes in Hindi for class 9, Class 10, Class 12 and Graduation Classes

बंगाल का विभाजन

Bangal ka Vibhajan

बंगाल विभाजन के निर्णय की घोषणा 19 जुलाई 1905 को भारत के तत्कालीन वाइसराय लॉर्ड कर्ज़न द्वारा की गयी थी. विभाजन 16 अक्टूबर 1905 से प्रभावी हुआ. विभाजन के कारण उत्पन्न उच्च स्तरीय राजनीतिक अशांति के कारण 1911 में दोनो तरफ की भारतीय जनता के दबाव की वजह से बंगाल के पूर्वी एवं पश्चिमी हिस्से पुनः एक हो गए.

विभाजन

सर्वप्रथम 1903 में बंगाल के विभाजन के बारे में सोचा गया. चिट्टागांग तथा ढाका और मैमनसिंह के जिलों को बंगाल से अलग कर असम प्रान्त में मिलाने के अतिरिक्त प्रस्ताव भी रखे गए थे. इसी प्रकार छोटा नागपुर को भी केन्द्रीय प्रान्त से मिलाया जाना था.

सरकार ने आधिकारिक तौर पर 1904 की जनवरी में यह विचार प्रकाशित किया और फरवरी में लॉर्ड कर्ज़न ने बंगाल के पूर्वी जिलों में विभाजन पर जनता की राय का आकलन करने के लिए अधिकारिक दौरे किये. उन्होंने प्रमुख हस्तियों के साथ परामर्श किया और ढाका, चटगांव तथा मैमनसिंह में भाषण देकर विभाजन पर सरकार के रुख को समझाने का प्रयास किया. हेनरी जॉन स्टेडमैन कॉटन, जो कि 1896 से 1902 के बीच आसाम के मुख्य आयुक्त (चीफ कमिश्नर) थे, ने इस विचार का विरोध किया.

1905 में 16 अक्टूबर को भारत के तत्कालीन वायसराय लार्ड कर्जन द्वारा बंगाल का विभाजन किया गया. विभाजन को प्रशासकीय कार्यों के लिए प्रोत्साहित किया गया, बंगाल लगभग फ्रांस जितना बड़ा था जबकि उसकी आबादी फ्रांस से कहीं अधिक थी. ऐसा सोचा गया कि पूर्वी क्षेत्र उपेक्षित और उचित रूप से शासित नहीं था. प्रान्त के बंटवारे से पूर्वीय क्षेत्र में बेहतर प्रशासन स्थापित किया जा सकता था जिससे अंततः वहां कि जनता स्कूल और रोजगार के मौकों से लाभान्वित होती. हालांकि, विभाजन की योजना के पीछे अन्य उद्देश्य भी छिपे थे. बंगाली हिंदू, शासन में अधिक से अधिक भागीदारी के लिए राजनैतिक आंदोलन में अग्रणी थे, अतः अब पूर्व में मुस्लिमों का वर्चस्व बढ़ने से उनकी स्थिति कमजोर हो रही थी| हिंदू और मुस्लिम दोनो ही ने विभाजन का विरोध किया| विभाजन के बाद, हालांकि, लगभग राष्ट्रीय स्तर पर ब्रिटिश विरोधी आंदोलन प्रबल हुआ जिसमे कि अहिंसक और हिंसक विरोध प्रदर्शन, बहिष्कार और यहां तक कि पश्चिम बंगाल के नए प्रांत के राज्यपाल की हत्या का प्रयास भी शामिल था.

1911 में रद्द किये जाने से पूर्व, विभाजन बमुश्किल आधे दशक तक चल पाया था. हालांकि बंटवारे के पीछे ब्रिटेन की नीति डिवाइड एट इम्पेरा (विभाजित करके शासन करो) थी, जो कि पुनर्संगठित प्रान्त को प्रभावित करती रही. 1919 में, मुसलमानों और हिंदुओं के लिए अलग-अलग चुनाव व्यवस्था स्थापित की गयी. इस से पहले, दोनों समुदायों के कई सदस्यों ने सभी बंगालियों के लिए राष्ट्रीय एकता की वकालत की थी. अब, अलग-अलग समुदायों ने अपने-अपने राजनैतिक मुद्दे विकसित कर लिए. मुस्लिमों ने भी अपनी समग्र संख्यात्मक शक्ति के बल पर, जो कि मोटे तौर पर दो करोड़ बीस लाख से दो करोड़ अस्सी लाख के बीच थी, विधानमंडल में वर्चस्व हासिल किया. राष्ट्रीय स्तर पर हिंदुओं और मुसलमानों के लिए दो स्वतंत्र राज्यों के निर्माण की मांग उठने लगी, अधिकांश बंगाली हिन्दू अब हिंदू बहुमत क्षेत्र और मुस्लिम बहुमत क्षेत्र के आधार पर होने वाले बंगाल के बंटवारे का पक्ष लेने लगे. मुस्लिम अब पूरे प्रान्त को मुस्लिम राज्य, पाकिस्तान का हिस्सा बनाना चाहते थे. 1947 में बंगाल दूसरी बार, इस बार धार्मिक आधार पर, विभाजित हुआ. यह पूर्वी पाकिस्तान बन गया. हालांकि, 1971 में पश्चिमी पाकिस्तानी सैन्य शासन के साथ एक सफल मुक्ति युद्ध के बाद पूर्वी पाकिस्तान बांग्लादेश नाम का स्वतंत्र राज्य बन गया. कई बार विभाजन रक्तपात से बचने की व्यावहारिक नीति हो सकता है, परन्तु उससे कहीं अधिक बार यह नयी समस्याओं का कारण भी बनता है, जो और अधिक लोगों को विभाजित कर सकती हैं.

 

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