Ancient India History Notes on “Battle of Chausa”, “चौसा का युद्ध” History notes in Hindi for class 9, Class 10, Class 12 and Graduation Classes

चौसा का युद्ध

Battle of Chausa

हुमायूँ  सत्ता में आने के बाद अफगानो की गतिविधियों पर बिल्कुल ध्यान नहीं दिया। जिसके कारण अफगान शक्तियों में बढ़ोतरी हुई और यही शक्तिया एक दिन इसके लिए आपति लेकर आई, इन शक्तियों का नियंत्रण शेर खां कर रहा था । शेर खाँ ने एक अफगान को दूत बनाकर भेजा जिससे उसकी सेना की दुर्व्यवस्था की सूचना मिल गई। फलस्वरुप 26 जून, 1539 ई. को हुमायूँ एवं शेर ख़ाँ की सेनाओं के मध्य गंगा नदी के उत्तरी तट पर स्थित ‘चौसा’ नामक स्थान पर संघर्ष हुआ। यह युद्ध हुमायूँ अपनी कुछ ग़लतियों के कारण हार गया। संघर्ष में मुग़ल सेना की काफ़ी तबाही हुई। हुमायूँ ने युद्ध क्षेत्र से भागकर एक भिश्ती का सहारा लेकर किसी तरह गंगा नदी पार कर अपने जान बचाई। जिस भिश्ती ने चौसा के युद्ध में उसकी जान बचाई थी, उसे हुमायूँ ने एक दिन के लिए दिल्ली का बादशाह बना दिया था।

चौसा का युद्ध में अफगानों को विजयश्री मिली। इस समय अफगान अमीरों ने शेर खाँ से सम्राट पद स्वीकार करने का प्रस्ताव किया। शेर खाँ ने सर्वप्रथम अपना राज्याअभिषेक कराया। बंगाल के राजाओं के छत्र उसके सिर के ऊपर लाया गया और उसने शेरशाह आलम सुल्तान उल आदित्य की उपाधि धारण की।

उत्तर भारत में द्वितीय अफ़ग़ान साम्राज्य के संस्थापक शेर ख़ाँ द्वारा बाबर के चदेरी अभियान के दौरान कहे गये ये शब्द अक्षरशः सत्य सिद्ध हुए, “ कि अगर भाग्य ने मेरी सहायता की और सौभाग्य मेरा मित्र रहा, तो मै मुग़लों को सरलता से भारत से बाहर निकाला दूँगा।” चौंसा युद्ध के पश्चात् शेर ख़ाँ ने ‘शेरशाह’ की उपाधि धारण कर अपना राज्याभिषेक करवाया।

 

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