कलिंग युद्ध
Kalinga war
भारतीय इतिहास में ऐसे कई युद्ध हुए हैं जिन्होंने इतिहास ही बदल डाला। ऐसा ही एक युद्ध था- कलिंग युद्ध। इसने भारतीय इतिहास के पूरे कालखंड को ही बदल कर रख दिया था। इस युद्ध को भारतीस इतिहास का भीषणतम युद्ध कहा जाता है। कलिंग युद्ध सम्राट अशोक के नेत़ृत्व में लड़ा गया था। युद्ध की विनाशलीला ने सम्राट को शोकाकुल बना दिया और वह प्रायश्चित्त करने के प्रयत्न में बौद्ध विचारधारा की ओर आकर्षित हुआ। कलिंग युद्ध ने अशोक के हृदय में महान परिवर्तन कर दिया । उसका हृदय मानवता के प्रति दया और करुणा से उद्वेलित हो गया । उसने युद्ध क्रियाओं को सदा के लिए बन्द कर देने की प्रतिज्ञा की । यहाँ से आध्यात्मिक और धम्म विजय का युग शुरू हुआ । उसने बौद्ध धर्म को अपना धर्म स्वीकार किया ।
सम्राट अशोक ने कई राजाओं को हराकर, अपने राज्य का विस्तार किया। उन दिनों कलिंग का राज्य भी मगध राज्य के समान प्रसिद्ध था। चार साल तक युद्ध हुआ, लेकिन कलिंग के राजा बहादुरी से लड़ रहे थे और सम्राट अशोक जीत नहीं पाए। चार साल तक युद्ध हुआ, लेकिन कलिंग के राजा बहादुरी से लड़ रहे थे और सम्राट अशोक जीत नहीं पाए। कलिंग वासी बहुत वीर थे। वे अपने राजा और अपनी जन्मभूमि से बहुत प्यार करते थे। अपना राज्य बढ़ाने के लिए सम्राट अशोक ने कलिंग राज्य पर आक्रमण कर दिया। अशोक ने अपने राज्याभिषेक के 8 वें वर्ष 261 ई. पू. में कलिंग पर आक्रमण किया था।लेकिन कलिंग को जीतना आसान नहीं था। मौर्य सम्राट के शब्दों में, ‘इस लड़ाई के कारण 1,50,000 आदमी विस्थापित हो गए, 1,00,000 व्यक्ति मारे गए और इससे कई गुना नष्ट हो गए।
एक दिन सम्राट अशोक अपने शिविर में उदास बैठे थे। वे सोच रहे थे कि दोनों ओर के लाखों सैनिक मारे जा चुके हैं, पर आज तक युद्ध का कोई फैसला नहीं हो सका है। तभी एक सैनिक ने आकर सूचना दी- ”महाराज की जय हो। अभी-अभी खबर मिली है। कलिंग के महाराज युद्ध में मारे गए।“ ”वाह ! यह तो बड़ी अच्छी खबर है। इसका मतलब हम युद्ध में जीत गए। मगध-राज्य अब हमारा है।“ अशोक प्रसन्न हो उठे। ”आपका सोचना ठीक है, महाराज परंतु कलिंग के किले का दरवाजा अभी भी बंद है।“ सिर झुकाकर सैनिक ने जवाब दिया। ”कोई बात नहीं, अब दरवाजा खुल जाएगा। कल मैं स्वयं कलिंग के दुर्ग का द्वार खुलवाऊॅंगा।“
”दूसरे दिन सम्राट अशोक ने स्वयं अपनी सेना का नेतृत्व किया। उनके पीछे मगध के हजारों सैनिक, सम्राट अशोक की जय-जयकार कर रहे थे। कलिंग दुर्ग के सामने पहॅुंचकर सम्राट अशोक ने अपनी सेना को ललकारा-”मगध के वीर सैनिकों, पिछले चार वर्षो से युद्ध चल रहा है। कलिंग के महाराज मारे जा चुके हैं। आओ हम शपथ लें। आज कलिंग दुर्ग के फाटक, खुलवाकर, दुर्ग पर मगध का झंडा फहराएँगे।“
”सम्राट अशोक की जय, मगध राज्य की जय।“ चारों ओर जय-जयकार गॅंूज उठी। शोर मचाती अशोक की सेना आगे बढ़ी। अचानक कलिंग दुर्ग का फाटक खुल गया। कलिंग देश की राजकुमारी पद्मा सैनिक वेष में घोड़े पर सवार खड़ी थीं। राजकुमारी पद्मा के पीछे स्त्रियों की सेना थी। राजकुमारी ने अपनी स्त्रियों की सेना से कहा-
”बहिनो, आज हमें अपने देश के सम्मान की रक्षा करनी है। जिन्होंने हमारे पिता, भाई, पति हमसे छीने हैं, वे हत्यारे आज हमारे सामने खड़े हैं। हमारे जीते जी, इस दुर्ग में ये प्रवेश नहीं कर सकते। जय भवानी ……………“ पद्मा के साथ स्त्री-सेना ने जय भवानी का हॅुंकार भरा।
सम्राट अशोक विस्मित थे। उन्होंने पूछा- ”तुम कौन हो देवी? सम्राट अशोक स्त्रियों से युद्ध नहीं करता। ”तुम मेरे पिता के हत्यारे हो। तुम्हें मुझसे युद्ध करना होगा सम्राट।“ राजकुमारी ने गर्जना की। ”नहीं, स्त्रियों पर हथियार चलाना अधर्म है। यह अन्याय मैं नहीं कर सकता।“ ”तुमने न्याय-अन्याय की चिंता कब की है – सम्राट? अपनी जीत के लिए तुमने लाखों मासूम लोगों की हत्या की है। अब तो केवल हम स्त्रियाँ बची हैं। दुर्ग पाने के लिए तुम्हें हमसे युद्ध करना पड़ेगा। ये सारी दुखी स्त्रियाँ तुमसे युद्ध करना चाहती हैं। तुमने इनके घर उजाडे़ हैं एसम्राट। क्या यह अन्याय नहीं है?“ पद्मा की आँखों से चिंगारियाँ-सी छिटक रही थीं।
”मैं अपनी गलती स्वीकार करता हूँ, राजकुमारी। मुझसे भूल हो गई। आप जो चाहें सजा दे दें।“ तलवार फंेककर अशोक ने सिर झुका लिया।
”नहीं तुम्हें हमसे युद्ध करना होगा। उठाओ तलवार सम्राट…………………….“
”नहीं राजकुमारी, आज के बाद यह तलवार कभी नहीं उठेगी। मेरा सिर हाजिर है, आप इसे काटकर अपने पिता की मृत्यु का बदला ले लीजिए।“
”नहीं महाराज, हम भी निहत्थों पर वार नहीं करते। जाइए, हमने आपको क्षमा किया।“
”धन्यवाद, राजकुमारी। आज से आप कलिंग का राज्य संभालिए। मगध और कलिंग दोनों राज्य मित्र बनकर रहेंगे। आज के बाद मैं कोई युद्ध नहीं करूँगा। मैं अपने शस्त्र त्यागता हूँ।“ कभी युद्ध न करने का निर्णय लेने के बाद सम्राट अशोक, युद्ध-भूमि में गए। युद्ध-भूमि पर खून से लथपथ लाखों शव पड़े थे। हजारों घायल पानी-पानी कहकर तड़प रहे थे, कराह रहे थे, उनकी यह दशा देखकर अशोक का दिल भर आया राज्य पाने के लिए उसने कितने लोगों की हत्या कर दी। अशोक का हृदय बेचैन था। तभी उसने देखा कुछ बौद्ध भिक्षु घायलों को पानी पिला रहे थे। उनके घावों पर मरहम-पट्टी कर रहे थे। अशोक उनके सामने घुटने टेककर बैठ गए।
”मैं अपराधी हूँ एदेव। मेरे हृदय को शांति दीजिए एभिक्षुवर।“ उन्होंने बोला -”धर्म ही तुम्हारे हृदय को शांति दे सकता है अशोक। तुम बौद्ध धर्म की शरण में आ जाओ।“ भिक्षु ने शांति से उत्तर दिया। ”मुझे क्या करना होगाए भिक्षुवर?“ ”प्रतिज्ञा करो, आज से तुम जीव-हत्या नहीं करोगे। जब तक शरीर में प्राण हैं, अहिंसा का पालन करोगे। सबसे प्रेम का व्यवहार करोगे।“
अशोक ने उसी समय प्रतिज्ञा किया – ”मैं प्रतिज्ञा करता हूँ, देव। मुझे बौद्ध धर्म की शरण में ले लीजिए।“ हाथ जोड़कर सम्राट अशोक ने प्रार्थना की।
”जाओ अपनी प्रतिज्ञा का पालन करो। तुम्हारे मन को अवश्य शांति मिलेगी, सम्राट।“ हाथ उठाकर भिक्षु ने सम्राट को आशीर्वाद दिया। कलिंग-युद्ध के बाद सम्राट अशोक ने कोई युद्ध नहीं किया। उसने अपनी प्रजा की भलाई और कल्याण में अपना जीवन बिताया। शांति और अहिंसा के धर्म को देश भर में फेलाया। इतना ही नहीं, उसे दूसरे देशों तक पहॅंुचाया। अशोक के राज्य में प्रजा बहुत सुखी थी। स्वयं सम्राट वेश बदलकर अपनी प्रजा का दुख-सुख जानने, घर-घर जाते थे। इतिहास में सम्राट अशोक का नाम अमर रहेगा।