सुभाष चन्द्र बोस
Subhash Chandra Bose
सुभाष चंद्र बोस (अंग्रेज़ी: Subhas Chandra Bose, जन्म- 23 जनवरी, 1897 ई., कटक, उड़ीसा; मृत्यु- 18 अगस्त, 1945 ई., जापान) के अतिरिक्त भारत के इतिहास में ऐसा कोई व्यक्तित्व नहीं हुआ, जो एक साथ महान सेनापति, वीर सैनिक, राजनीति का अद्भुत खिलाड़ी और अन्तर्राष्ट्रीय ख्याति प्राप्त पुरुषों, नेताओं के समकक्ष साधिकार बैठकर कूटनीति तथा चर्चा करने वाला हो। भारत की स्वतंत्रता के लिए सुभाष चंद्र बोस ने क़रीब-क़रीब पूरे यूरोप में अलख जगाया। बोस प्रकृति से साधु, ईश्वर भक्त तथा तन एवं मन से देशभक्त थे। महात्मा गाँधी के नमक सत्याग्रह को ‘नेपोलियन की पेरिस यात्रा’ की संज्ञा देने वाले सुभाष चंद्र बोस का एक ऐसा व्यक्तित्व था, जिसका मार्ग कभी भी स्वार्थों ने नहीं रोका। जिसके पाँव लक्ष्य से कभी पीछे नहीं हटे, जिसने जो भी स्वप्न देखे, उन्हें साधा। नेताजी में सच्चाई के सामने खड़े होने की अद्भुत क्षमता थी।
जीवन परिचय
सुभाष चंद्र बोस का जन्म 23 जनवरी, सन 1897 ई. में उड़ीसा के कटक नामक स्थान पर हुआ था। द्वितीय विश्व युद्ध के दौरान पश्चिमी शक्तियों के विरुद्ध ‘आज़ाद हिंद फ़ौज’ का नेतृत्व करने वाले बोस एक भारतीय क्रांतिकारी थे, जिनको ससम्मान ‘नेताजी’ भी कहते हैं। बोस के पिता का नाम ‘जानकीनाथ बोस’ और माँ का नाम ‘प्रभावती’ था। जानकीनाथ बोस कटक शहर के मशहूर वक़ील थे। पहले वे सरकारी वक़ील थे, लेकिन बाद में उन्होंने निजी प्रैक्टिस शुरू कर दी थी।
महापालिका में लंबे समय तक काम किया था और वे बंगाल विधान सभा के सदस्य भी रहे थे। अंग्रेज़ सरकार ने उन्हें ‘रायबहादुर का ख़िताब’ दिया था। प्रभावती देवी के पिता का नाम गंगानारायण दत्त था। दत्त परिवार को कोलकाता का एक कुलीन परिवार माना जाता था। प्रभावती और जानकीनाथ बोस की कुल मिलाकर 14 संतानें थी, जिसमें 6 बेटियाँ और 8 बेटे थे। सुभाष चंद्र बोस उनकी नौवीं संतान और पाँचवें बेटे थे। अपने सभी भाइयों में से सुभाष को सबसे अधिक लगाव शरदचंद्र से था। शरदबाबू प्रभावती और जानकीनाथ के दूसरे बेटे थे। सुभाष उन्हें ‘मेजदा’ कहते थे। शरदबाबू की पत्नी का नाम विभावती था।
देश भक्ति की भावना
बोस जी अंग्रेज़ी शिक्षा को निषेधात्मक शिक्षा मानते थे। किन्तु बोस जी को उनके पिता ने समझाया- हम भारतीय अंग्रेज़ों से जब तक प्रशासनिक पद नहीं छीनेंगे, तब तक देश का भला कैसे होगा। सुभाष ने इंग्लैंड में जाकर आई. सी. एस. की परीक्षा उत्तीर्ण की। वे प्रतियोगिता में उत्तीर्ण ही नहीं हुए, चतुर्थ स्थान पर रहे। नेता जी एक बहुत मेधावी छात्र थे। वे चाहते तो उच्च अधिकारी के पद पर आसीन हो सकते थे। परन्तु उनकी देश भक्ति की भावना ने उन्हें कुछ अलग करने के लिए प्रेरित किया। बोस जी ने नौकरी से त्याग पत्र दे दिया। सारा देश हैरान रह गया। बोस जी को समझाते हुए कहा गया- तुम जानते भी हो कि तुम लाखों भारतीयों के सरताज़ होगे? तुम्हारे हज़ारों देशवासी तुम्हें नमन करेंगे? सुभाष ने कहा-
मैं लोगों पर नहीं उनके मनों पर राज्य करना चाहता हूँ। उनका हृदय सम्राट बनना चाहता हूँ।
उन्होंने मध्य-एशिया तथा कॉकेशस भ्रमण पर भी यात्रा वृतांत लिखे जो साहित्यिक दृष्टि से बहुत महत्वपूर्ण हैं ।