Category: Hindi Poems
श्री सूर्यकांत त्रिपाठी के प्रति -सुमित्रानंदन पंत Shri Surya Kant Kripathi ke Prati – Sumitranand Pant छंद बंध ध्रुव तोड़, फोड़ कर पर्वत कारा अचल रूढ़ियों की, कवि! तेरी …
वायु के प्रति -सुमित्रानंदन पंत Vayu Ke Prati – Sumitranand Pant प्राण! तुम लघु लघु गात! नील नभ के निकुंज में लीन, नित्य नीरव, नि:संग नवीन, निखिल छवि की …
सांध्य वंदना -सुमित्रानंदन पंत Sandhya Vandana – Sumitranand Pant जीवन का श्रम ताप हरो हे! सुख सुषुमा के मधुर स्वर्ण हे! सूने जग गृह द्वार भरो हे! लौटे गृह …
मोह -सुमित्रानंदन पंत Moh – Sumitranand Pant छोड़ द्रुमों की मृदु-छाया, तोड़ प्रकृति से भी माया, बाले! तेरे बाल-जाल में कैसे उलझा दूँ लोचन? भूल अभी से इस …
अनुभूति -सुमित्रानंदन पंत Anubhuti – Sumitranand Pant तुम आती हो, नव अंगों का शाश्वत मधु-विभव लुटाती हो। बजते नि:स्वर नूपुर छम-छम, सांसों में थमता स्पंदन-क्रम, तुम आती हो, अंत:स्थल …
बापू के प्रति -सुमित्रानंदन पंत Bapu Ke Prati – Sumitranand Pant तुम मांस-हीन, तुम रक्त-हीन, हे अस्थि-शेष! तुम अस्थि-हीन, तुम शुद्ध-बुद्ध आत्मा केवल, हे चिर पुराण, हे चिर नवीन! …
महात्मा जी के प्रति -सुमित्रानंदन पंत Mahatma Ji Ke Prati – Sumitranand Pant निर्वाणोन्मुख आदर्शों के अंतिम दीप शिखोदय!– जिनकी ज्योति छटा के क्षण से प्लावित आज दिगंचल,– गत …
समर शेष है -रामधारी सिंह दिनकर Samar Shesh hai -Ramdhari Singh Dinkar ढीली करो धनुष की डोरी, तरकस का कस खोलो , किसने कहा, युद्ध की बेला चली गयी, …