असहयोग आन्दोलन के प्रणेता महात्मा गाँधी
Asahyog Andolan ke Praneta Mahatma Gandhi
भारत माता की आजादी के लिये अनेक राष्ट्रीय आन्दोलन चलाये गये थे। जिनमें 1919 से 1947 के समयकाल में जो राष्ट्रीय आन्दोलन चलाये गये उनको गाँधीवादी युग के नाम से जाना जाता है, क्योंकि इस दौरान होने वाले अधिकांश आंदोलनों का नेतृत्व महात्मा गाँधी जी ने किया था।
असहयोग आन्दोलन (Non Cooperation Movement / Asahyog Andolan) की शुरुवात 1920 में कलकत्ता अधिवेशन से हुई थी। आन्दोलन के उद्देश्य के सम्बंध में गाँधी जी ने कहा था कि, हमारा उद्देश्य है स्वराज्य। यदि संभव हो, तो ब्रिटिश साम्राज्य के अंर्तगत और यदि आवश्यक हो, तो ब्रिटिश साम्राज्य के बाहर।
असहयोग आन्दोलन प्रथम राष्ट्रव्यापी आन्दोलन था, जिसमें समस्त भारत की जनता ने उत्साह से भाग लिया था। मुस्लिम लीग का खिलाफत आन्दोलन भी असहयोग आन्दोलन के साथ था।
असहयोग आन्दोलन का प्रमुख उद्देश्य था, ब्रिटिश भारत की राजनीतिक, आर्थिक तथा सामाजिक संस्थाओं का बहिष्कार करना और शासन की मशीनरी को बिलकुल ठप्प करना। असहयोग आन्दोलन सफल बनाने के लिये कई कार्यक्रम आयोजित किये गये। जैसे कि-
सरकारी उपाधियाँ, वैतनिक तथा अवैतनिक पदों का त्याग।
सरकारी उत्सवों अथवा दरबारों में सम्मलित न होना।
सरकारी एवं अर्द्ध सरकारी स्कूलों एवं कॉलेजों का त्याग।
1919 के अधिनियम के अर्न्तगत होने वाले चुनावों का बहिष्कार।
सरकारी अदालतों का बहिष्कार।
विदेशी माल का बहिष्कार।
यहाँ ये जानना आवश्यक है कि, असहयोग आन्दोलन का आगाज आखिर हुआ क्यों ? जबकि जब गाँधी जी राजनीति में आये थे, तब वे ब्रिटिश शासन की त्रुटियों के प्रति सचेत होते हुए भी उनकी न्याय प्रियता पर विश्वास रखते थे।
प्रथम विश्व युद्ध में सम्भवतः गाँधी जी ने ब्रिटिश सरकार को सहयोग देने की अपील जनता से की थी। दरअसल ब्रिटिश वादों के अनुसार गाँधी जी एवं जनता को ये विश्वास था कि प्रथम विश्व युद्ध के बाद भारत में लोकतंत्र कायम होगा किन्तु ऐसा नही हुआ। जिसकी वजह से गाँधी जी को सहयोग के स्थान पर असहयोग का मार्ग अपनाना पङा।
असहयोग आन्दोलन के और भी अन्य कारण थे। जैसे कि, माण्टफोर्ड सुधार घोषणाओं ने स्वराज के वचन को तोङ दिया। ये भारतीयों को अपमानजनक लगा। तिलक ने कहा था कि, हमें बिना सूर्य का सवेरा दिया गया है।
युद्धकाल में अत्यधिक खर्च से भारत की आर्थिक दशा कमजोर हो गई थी, फिरभी अंग्रेजों ने भारतीयों का आर्थिक शोषण किया। 1918 के रोलेट एक्ट के नियम भी इस आन्दोलन का कारण बनें। रोलेट एक्ट को भारतीयों ने काले कानून की संज्ञा दी थी।
जलियावाला बागकांड तथा हंटर समिति की रिपोर्ट ने असहयोग आन्दोलन में आग में घी का काम किया।
पट्टाभिसीतारमैया ने कहा था कि, खिलाफत और पंजाब के अत्याचारों तथा अपर्याप्त सुधारों ने उबलती हुई त्रीवेणीं का रूप धारण किया था। इसने राष्ट्रीय असंतोष के प्रवाह को और तीव्र कर दिया। असहयोग आन्दोलन में कांग्रेस के आह्वान पर भारत की जनता हर तरह से साथ थी।
गाँधी जी ने कहा था कि, आन्दोलन पूरी तरह अहिंसक होना चाहिये किन्तु फरवरी 1922 में चौरी-चौरा काण्ड की वजह से असहयोग आन्दोलन को स्थगित करना पङा।
वास्तविकता में असहयोग आन्दोलन जितने दिन भी चला उसने ब्रिट्रिश साम्राज्य की नींव हिला दी थी। नेहरु जी ने इस आन्दोलन के उत्साह पर कहा था कि, जेल भर गई थी। वातावरण में बिजली भरी हुई थी और चारो ओर गङगङाहट हो रही थी, ऐसा जान पङ रहा था कि, अन्दर ही अन्दर क्रान्ति हो रही है।
इस आन्दोलन ने ब्रिटिश साम्राज्य की जङों पर प्रहार किया था। श्री चिमनलाल सितलवाड के अनुसार, वायसराय लार्ड राडिंग कुर्सी पर हताश बैठ गया था और अपने दोनों हाँथों से सिर थामकर फूट पङा था।
असहयोग आन्दोलन के दौरान भारत में राष्ट्रीय एकता का अद्भुत वातावरण बना था। सचमुच,असहयोग आन्दोलन एक अद्भुत और अनोखा आन्दोलन था।