Hindi Poem of Adam Gondvi “Bechta yu hi nahi hai aadmi iman ko“ , “बेचता यूँ ही नहीं है आदमी ईमान को ” Complete Poem for Class 9, Class 10 and Class 12

बेचता यूँ ही नहीं है आदमी ईमान को
Bechta yu hi nahi hai aadmi iman ko

बेचता यूँ ही नहीं है आदमी ईमान को,
भूख ले जाती है ऐसे मोड़ पर इंसान को ।

सब्र की इक हद भी होती है तवज्जो दीजिए,
गर्म रक्खें कब तलक नारों से दस्तरख़्वान को ।

शबनमी होंठों की गर्मी दे न पाएगी सुकून,
पेट के भूगोल में उलझे हुए इंसान को ।

पार कर पाएगी ये कहना मुकम्मल भूल है,
इस अहद की सभ्यता नफ़रत के रेगिस्तान को ।

 

 

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