Hindi Poem of Adam Gondvi “Hindu ya muslim ke ahsasat ko mat chediye” Complete Poem for Class 9, Class 10 and Class 12

हिन्दू या मुस्लिम के अहसासात को मत छेड़िए

Hindu ya muslim ke ahsasat ko mat chediye

हिंदू या मुस्लिम के अहसासात को मत छेड़िए

 अपनी कुरसी के लिए जज्‍बात को मत छेड़िए

 हममें कोई हूण, कोई शक, कोई मंगोल है

 दफ़्न है जो बात, अब उस बात को मत छेड़िए

 ग़लतियाँ बाबर की थी; जुम्‍मन का घर फिर क्‍यों जले

 ऐसे नाज़ुक वक़्त में हालात को मत छेड़िए

 हैं कहाँ हिटलर, हलाकू, जार या चंगेज़ ख़ाँ

 मिट गए सब, क़ौम की औक़ात को मत छेड़िए

 छेड़िए इक जंग, मिल-जुल कर गरीबी के खिलाफ़

 दोस्त मेरे मजहबी नग़मात को मत छेड़िए

 

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