Hindi Poem of Agnishekhar “Dhul , “धूल” Complete Poem for Class 10 and Class 12

धूल -अग्निशेखर

Dhul -Agnishekhar

 

जब हमें दिखाई नहीं देती
पता नहीं कहाँ रहती है उस समय
और जब हम एक धुली हुई सुबह को
जो खुलती है हमारे बीच
जैसेकि एक पत्र हो
उसके किसी बे-पढ़े वाक्य को छूने पर
हमारी उँगली से चिपक जाती है

यह कैसे समय में रह रहे हैं हम
कि धूल सने काँच पर
हमारे संवेदनशील स्पर्श
हमारी उधेड़बुन
हमारे रेखांकन
हमारी बदतमीजियों के अक्स
कहे जाते हैं

यह समय क्या धूल ही है
जिससे कितना भी बचा जाए
पड़ी हुई मिलती है
उस अलमारी में भी
जिसे हम सबके सामने नहीं खोलते
मैंने सपने में खिल आये गुलाब पर भी
इसे देखा है
यों देखा जाए तो
जिसे हम काली रात कहते हैं
वह सूरज की आँख में
धूल का झोंका है

इन शब्दों में
जबकि मै लिख रहा हूँ कविता
वह झाँक रही होगी कहीं पास से
और मेरे कहीं चले जाने पर
उतर आएगी मेज़ पर.

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