Hindi Poem of Agnishekhar “Ken par bhinsar , “केन पर भिनसार ” Complete Poem for Class 10 and Class 12

केन पर भिनसार -अग्निशेखर

Ken par bhinsar -Agnishekhar

 

बीच पुल पर खड़ा मैं अवाक‌
ओस भीगी नीरवता में
बांदा के आकाश का चन्द्रमा
हो रहा विदा
केन तट पर छोड़े जा रहा

पाँव के निशान

बड़ी-बड़ी पलकों वाली उसकी प्रेयसी
बेख़बर मेरी और मेरे कविमित्र की मौज़ूदगी से
निहारती एकटक वो मुक्तकेशी
जन्मों से बँधी
अभी मांग में उतरेगा केसर
और संसार बदल जाएगा

साँस रोके खड़ा मैं पुल पर
सुदूर बादल के घोंसलों में कहीं से
बोल पड़ता है कोई जलपाँखी
सचेत-सा करता केन को

मेरे बारे में

ओ, भोले जलपाँखी
मेरी भी केन थी एक
राग-भैरवी-सी
सात-सात पुलों के नीचे से हो बहती
मैं चलता तटों पर साथ उसके
खेलता
गाता
इठलाता
कभी उतरता तहों में
तैरता आर-पार…

बरसों बाद जलावतनी में
यह विस्मय…
निश्शब्दता…

और क्षितिज पर सरकती
वो श्यामल लिहाफ़
केन का अलसाया रूप
मुखर चाहना फिर से प्रिय की

मैं लौटता हूँ वापस
उदास और अभिभूत
चुप है जलपाँखी भी

Leave a Reply

This site uses Akismet to reduce spam. Learn how your comment data is processed.