Hindi Poem of Ajay Pathak “Bhor tak , “भोर तक ” Complete Poem for Class 10 and Class 12

भोर तक -अजय पाठक

Bhor tak – Ajay Pathak

 

एक आशा जगाती रही भोर तक,
चाँदनी मुस्कुराती रही भोर तक।

माधुरी-सी महकती रही यामिनी,
और मन को जलाती रही भोर तक।

आगमन की प्रतीक्षा किए रात भर,
चौंकते ही रहे बात ही बात पर,
भावना की लहर ने बहाया वहीं
डूबते ही रहे घात-प्रतिघात पर,
शब्द उन्मन अधर से निकलते रहे,
वेदनायें सताती रहीं भोर तक।

प्रेम की पूर्णता के हवन के लिए,
अनकहे नेह के दो वचन के लिए,
प्राण करता रहा है जतन पे जतन,
वेग उद्वेग ही के शमन के लिए,
एक तिनके-सा मन कंपकंपाता रहा,
प्रीत उसको बहाती रही भोर तक।

धूप-सी उम्र चढ़ती उतरती रही,
ज़िंदगी में कई रंग भरती रही,
और निष्फल हुई हार कर कामना
एक अंधे डगर से गुज़रती रही
जो हृदय में सुलगती रही आँच-सी
वो तृषा ही जलाती रही भोर तक।

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