Hindi Poem of Ajay Pathak “Mon ho gye , “मौन हो गए ” Complete Poem for Class 10 and Class 12

मौन हो गए -अजय पाठक

Mon ho gye – Ajay Pathak

 

अक्षर-अक्षर मौन हो गए, मौन हुआ संगीत
परदेसी के साथ गया है, जब से मन का मीत।

चलता है सूरज वैसे ही दुनिया भी चलती है
और तिरोहित होकर संध्या वैसे ही ढलती है
किंतु गहनतम निशा अकेली मन को ही छलती है
अधरों पर सजने लगता है, अनजाना-सा गीत।

डाल-डाल पर खिले सुमन को ॠतुओं ने घेरा है
अपने अंतर में पतझड़ का ही केवल डेरा है
स्मृतियों के ओर छोर तक उसका ही फेरा है
उधर खिला मधुबन हँसता है रोता इधर अगीत।

दूर गगन में उगे सितारे अपनों से लगते हैं
लिए किरण की आस भोर तक वह भी तो जगते हैं
अनबोले शब्दों की भाषा में सब कुछ कहते हैं
एक सुखद जो वर्तमान था, वह भी हुआ अतीत।

सपनों के झुरमुट में उतरा कालिख-सा अँधियारा
हमने उसको रात-रात भर खोजा उसे पुकारा
खड़ा रहा बनकर निर्मोही निरर्थक रहा इशारा
जलती-बुझती रही निशा भर अनुभव की परतीत

अक्षर-अक्षर मौन हो गए, मौन हुआ संगीत
परदेसी के साथ गया है, जब से मन का मीत।

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