पकड़ नहीं आती छवि – अम्बर रंजना पाण्डेय
Pakad Nahi aati chavi – Ambar Ranjna Pandey
दूती की भूमिका में मंच पर
बाँच रही हैं आर्या-छंद मेरी प्रेयसी ।
चाँदी की पुतलियों का हार और हँसुली
गले में पहनें । संसार यदि छंद-
विधान है तो उसमें
अन्त्यानुप्रास हैं वह । किसी
उत्प्रेक्षा-सा रूप जगमग दीपक
के निकट । दूती के छंद में कहती
हैं नायिका से, छाजों
बरसेगा मेह, उसकी छवि की छाँह
बिन छलना यह जग, जाओ सखी
छतनार वट की छाँह खड़ा है
तुम्हारा छबीला और मुझे मंच के नीचे
कितना अन्धकार लगता है । कैसे रहूँगा मैं
जब तुम चली जाओगी राष्ट्रीय नाट्य विद्यालय,
दिल्ली । यह अभिनय नहीं सुहाता, नट-
नटियों के धंधे ।
रूप दिखता है और अचानक
हो जाता है स्वाद । पकड़
नहीं आती छवि छंद से भी
ज्यादा छंटैत है ।