महान बनने का भूत
Mahan banne ka bhut
महान बनने का भूत
मुझे दीमक-सा चाट गया
मेरे सोए कवि को
जहरीले साँप-सा काट गया
मोची से उसके बक्से पर बैठ
बतियाने में
लड़की को छेड़छाड़ से बचाने में
दोस्तों को जुआ खेलने से हड़काने में
भंग खाकर ठिठियाने में
सूट्टे लगाने में
जैसे तैसे दिल्ली आ जाने में
मरने के बाद पिता की डायरी को
आविष्कारक की तरह पढ़ने में
दो एक बार माँ का इलाज कराने में
लोभ लालच और अपनी नीच हरकतों से
कभी कभार झटका खा जाने में
पण्डे-पुरोहितों से लड़ जाने में
बीड़ी-खैनी खाकर रात भर जग जाने में
मरे हुए कुछ दार्शनिकों को
मन ही मन
दोस्त दुश्मन और शागिर्द बनाने में
इधर उधर दो चार कविता छपाने में
निकल गई मेरी सारी महानता
फुस्स हो गई कविता