अब ’अमित’ अन्जुमन से जाते हैं
Ab Amit anjuman se jate hai
बाइसे-शौक आजमाते हैं
कितने मज़बूत अपने नाते हैं
रोज़ कश्ती सवाँरता हूँ मैं
कुछ नये छेद हो ही जाते हैं
बाकलमख़ुद बयान था मेरा
अब हवाले कहीं से आते हैं
जिनपे था सख़्त ऐतराज़ उन्हे
उन्हीं नग़्मों को गुनगुनाते हैं
शम्मये-बज़्म ने रुख़ मोड़ लिया
अब ’अमित’ अन्जुमन से जाते हैं
बाइसे-शौक = शौक के लिये,