Hindi Poem of Amitabh Tripathi Amit “Aham ki odh kar chadar“ , “अहम की ओढ़ कर चादर ” Complete Poem for Class 9, Class 10 and Class 12

अहम की ओढ़ कर चादर
Aham ki odh kar chadar

 

अहम की ओढ़ कर चादर
फिरा करते हैं हम अक्सर

अहम अहमों से टकराते
बिखरते चूर होते हैं

मगर फिर भी अहम के हाथ
हम मजबूर होते हैं

अहम का एक टुकड़ा भी
नया आकार लेता है

ये शोणित बीज का वंशज
पुनः हुंकार लेता है

अहम को जीत लेने का
अहम पलता है बढ़-चढ़ कर
अहम की ओढ़ कर …..

विनय शीलो में भी अपनी
विनय का अहम होता है

वो अन्तिम साँस तक अपनी
वहम का अहम ढोता है

अहम ने देश बाँटॆ हैं
अहम फ़िरकों का पोषक है

अहम इंसान के ज़ज़्बात का भी
मौन शोषक है

अहम पर ठेस लग जाये
कसक रहती है जीवन भर
अहम की ओढ़ करे चादर …

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