अज़नबी अबके आश्ना सा था
Ajnabi abke asana sa tha
मैं बहरहाल बुत बना सा था
वो भी मग़रूर और तना सा था
कुछ शरायत दरख़्त ने रख दीं
वरना साया बहुत घना सा था
साक़िये-कमनिगाह से अर्ज़ी
जैसे पत्थर को पूजना सा था
ख़ूब दमसाज़ थी ख़ुशबू लेकिन
साँस लेना वहाँ मना सा था
दर्द से यूँ तो नया नहीं था ‘अमित’
अज़नबी अबके आश्ना सा था