Hindi Poem of Amitabh Tripathi Amit “Batarj-e- meer “ , “बतर्ज-ए-मीर” Complete Poem for Class 9, Class 10 and Class 12

बतर्ज-ए-मीर
Batarj-e- meer

 

अक्सर ही उपदेश करे है, जाने क्या – क्या बोले है।
पहले ’अमित’ को देखा होता अब तो बहुत मुहँ खोले है।

वो बेफ़िक्री, वो अलमस्ती, गुजरे दिन के किस्से हैं,
बाजारों की रक़्क़ासा, अब सबकी जेब टटोले है।

जम्हूरी निज़ाम दुनियाँ में इन्क़िलाब लाया लेकिन,
ये डाकू को और फ़कीर को एक तराजू तोले है।

उसका मक़तब, उसका ईमाँ, उसका मज़हब कोई नहीं,
जो भी प्रेम की भाषा बोले, साथ उसी के हो ले है।

बियाबान सी लगती दुनिया हर रौनक काग़ज़ का फूल
कोलाहल की इस नगरी में चैन कहाँ जो सो ले है

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