Hindi Poem of Amitabh Tripathi Amit “Ek benam mahboob ke naam“ , “एक बेनाम महबूब के नाम” Complete Poem for Class 9, Class 10 and Class 12

एक बेनाम महबूब के नाम
Ek benam mahboob ke naam

 

चाहता हूँ कि तेरा रूप मेरी चाह में हो
तेरी हर साँस मेरी साँस की पनाह में हो

मेरे महबूब तेरा ख़ुद का जिस्म न हो
मेरे एहसास की मूरत कोई तिलिस्म न हो

ढूँढता फिरता हूँ हर सिम्त भुला के ख़ुद को
अपनी पोशीदा रिहाइश का पता दे मुझको

तुझसे मिलने की क़सम मैंने नहीं तोड़ी है
दिल ने उम्मीद बहरहाल नहीं छोड़ी है

तुझको पाने का अभी मुझको इख़्तियार नहीं
पर मेरा इश्क़ कोई रेत की दीवार नहीं

बावफ़ा अब भी हूँ पर मेरी कहानी है अलग
मेरी आँखें हैं अलग आँख का पानी है अलग

अब न मजबूरी-ओ-दूरी का गिला कर मुझसे
यूँ नहीं है तो तसव्वुर में मिला कर मुझसे

मेरे महबूब तू इक रोज़ इधर आयेगा
हाँ मगर वक़्त का दरिया तो गुज़र जायेगा

तब न शाख़ों पे कहीं गुल नही पत्ते होंगे
जा-ब-जा बिखरे हुये बर्फ़ के छत्ते होंगे

एक मनहूस सफ़ेदी यहाँ फैली होगी
चाँदनी अपनी ही परछाई से मैली होगी

तब भी जज़्बात पे हालात का पहरा होगा
वक़्त इक फीकी हँसी पर कहीं ठहरा होगा

पस्त-कदमों से तू चलता हुआ जब आयेगा
सर्द-तूफ़ान के झोकों से सिहर जायेगा

मेरे अल्फ़ाज़ में तब भी यही नरमी होगी
और मेरे कोट में अहसास की गरमी होगी

शब्दार्थ:
तिलिस्म = रहस्य, हर सिम्त = सभी ओर या हर तरफ़, पोशीदा रिहाइश = गुप्त निवास, बहरहाल = हर हाल में,
इख़्तियार = अधिकार,बावफ़ा = बफ़ादार, गिला = शिकायत, तसव्वुर = ख़याल या ध्यान, जा-ब-जा = जगह – जगह,
ज़ज़्बात = भवनायें, हालात = परिस्थितियाँ,पस्त-कदमों से = छोटे कदमों से, अल्फ़ाज़ में = शब्दों में, कोट = कोट।

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