Hindi Poem of Amitabh Tripathi Amit “Ji ko ji bhar ro lene do“ , “जी को जी भर रो लेने दो ” Complete Poem for Class 9, Class 10 and Class 12

जी को जी भर रो लेने दो
Ji ko ji bhar ro lene do

 

जी को जी भर रो लेने दो
आँखों को जल बो लेने दो
किसी और को बतलाना क्या
मन थक जाये सो लेने दो

किसने समझी पीर पराई
फिर क्यों सबसे करें दुहाई
जिससे मन विचलित है इतना
है अपनी ही पूर्व – कमाई

छिछले पात्र रीतते-भरते
क्षण-क्षण, नये रसों में बहते
तृष्णा की इस क्रीड़ा को हम
शोक-हर्ष से देखा करते

करते हैं यत्नों का लेखा
खिंचती चिंताओं की रेखा
लक्ष्य-परीक्षा में अधैर्य को
प्रायः असफल होते देखा

कैसी उलझी मनोदशा है
तम में लिपटी हुई उषा है
अनिश्चयों का दीर्घ दिवस फिर
भय-आच्छादित घोर-निशा है

सरल हृदय के लिये कठिन है
किसका मन किस भाँति मलिन है
विश्वासों पर संकट कितने
साँस-साँस जैसे साँपिन है

नहीं! किसी का दोष नहीं है
किसी मनुज पर रोष नहीं है
मन की उथल-पुथल है थोड़ी
है प्रतीति पर तोष नहीं है।

कितनी लम्बी कहूँ कहानी
बात रहेगी वही पुरानी
फिर-फिर जीवित हो जाते हैं
प्रेत-कथा से राजा-रानी

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